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CSIRISTOTSTD3505125 विधानुशासन PASTOISEDICTIO51058
तेषां नवग्रहाणां पश्चाल्लिरिवतेन पथक पृथक
श्रद्धेन तेषां रूर्पणैव प्रतिमायां भौम युक्तायां ॥१२॥ इसके पश्चात पृथक पृथक लिने हुए उन नवग्रहों के शुद्ध रुप से भौम युक्त प्रतिमाएं
पुरुषातीतायुर्वर्ष संरव्य या तंदुलाजलिनादाटा. तत्पिष्टं न तु कुर्याद ग्रहरूपं लक्षण समेतं
॥१३॥ नवग्रह से पीड़ित पुरुष की बीती हुई आयु के वर्षों की संख्या प्रमाण चावलों की अंजुलियों को लेकर और उसको पीसकर लक्षण सहित ग्रह का रुप बनाए।
तद्रूपं वह वलि भक्ष गंध सन्माल्य दीप धूप युतं, अग्रे निया व तस्य तुरस्य नव पटलिकांतस्थं
॥१४॥ उन ग्रहों के रुपों को बहुत प्रकार की बलि भक्ष योग्य व्यंजनों को गंध पुष्प माला दीप और धूप सहित बलि दे और उनके सन्मुख नए पाटे पर ग्रह से पीड़ित पुरुष को बैठाएँ।
खड्गै रावण विद्या मंत्रै चार यन्म हा मंत्री,
पुष्पै निवर्य पूर्व सतंदुलै यह मुरवं हन्यात् । ॥१५॥ फिर मंत्री खंगै रावण विद्या का जोर से उच्चारण करता हुआ पहले पुष्पों की बलि देकर फिर उनके मुख पर चावल मारे।
खगैरावण मंत्रः ॐरवड्गै रावणाय विद्या है चंड़ेश्वर भाश श धीमहे तन्नो देवः प्रचोदयात्
रूपेण तेन पश्चान्निा विधिना जलस्टा मध्ये,
तंद्याब्द लिं निशायां समस्त दोषान् हरत्याशु ॥१६॥ फिर उस रूप को रात्री मे विधि पूर्वक बलि देकर जल में स्थापित कर दे तो समस्त दोष शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।
सप्त विद्यो नीरांजन विधिरैष ज्वालिनी समदिष्टः
ग्रह भूत रोग शाकिन्यापमृत्यु भयापहत्सद्मः ॥१६॥ यह ज्वाला मालिनी देवी समुद्देश में सात प्रकार की नीरांजन विधि ग्रह भूत रोग शाकिनी अप मृत्यु के भय को शीघ्र ही नष्ट करती है।
तेषां नव गृहाणां तत शांति विधि कियां,
सदा तेपि कुर्वति महादुःश्व प्रतिकला स्तनु भृतां ज्ञेया ॥१७॥ CTETRIOTISISTSISTIONSIS९५५ PASTOTSIRIDIOISIOTSTORITES