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________________ CHRISTD3501555 विद्याजुशासन BASIDDIDISTRISTOIDRIST कशरादे चोदनं गंध वलि भक्ष सहितेन, रुपेण तेन कुर्या न्विव र्द्धनं निशि समस्त दोष हां ॥६॥ चावलों की खिचड़ी जल चंदन और भक्ष्य योग्य व्यंजनों की बलि देने से और उनका पूर्वोक्त रूप बनाने से रात्री के समस्त दोष नष्ट होकर वृद्धि होती है। क्षयोलसति संष्टं विलित जिह्वा त्रिनेत्रमपनाशं पीठेन कारर्यद्विकरालं वागीश्वरी रूपं ॥७॥ फिर तीदण उन्नत और श्वेत डाढ़ों वाली निकलती हुई जिह्वा वाली तीन नेत्र याली वागेश्वरी देवी का विकराल रुप पिसी हुई सिद्ध मिट्टी से बनाएं। रुपेण तेन बहु बलि भक्ष चरु कर दीप धूप सहितेन, कुयाग्निवर्द्धनं सकल दोष हृत वज मंत्रेण ॥८॥ इन बागेश्वरी देवि के रुप को बनाकर चरु दीप और धूप की बलि से आरत्या खड्ग मंत्र से देने से सम्पूर्ण दोष नष्ट हो जाते है। योगिनी का दिव्य महा योगिनी का सिद्ध योगिनी चैव अन्या जित्वरी प्रता शिन्य च शाकिनी देवी ॥९॥ दिव्य योगिनी-महा योगिनी-सिद्ध योगिनी और अन्य जिनेश्वरि प्रेताशिनी और शाकिनी देवी रूपाण्यासांपिष्टेन कार्यदक्ष बलि समेतानि जिह्वाष्टक मष्ट शतेनेत्राणां कात्प्रागवत के रुपों को पिसी हुई सिद्ध मिट्टी से तथा भक्ष द्रव्य और बलि सहित आठ जिह्वा और एक सो आठ नेत्रों वाला पहले की तरह बनाएं। घंटा पताकिका माल्या दीप यक्तेन तेन मंत्रण, रूपेणेकैकेन प्रति दिवसं कुरु निवर्द्धनकंबलि विधिः ॥११॥ इनके सन्मुख घंटा पताका औरमाला दीपक धूप सहित आदि रखकर सिद्ध मंत्र से चरु की यलि प्रतिदिन पृथक पृथक दे। इति बलि विधि: CSCIETDISTRISTICISTRITIS९५४ 1STRITICISTRISTS15055055
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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