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________________ PSPSPSPSS विधानुशासन 95959595SP59 शत मुखरिपु मंत्र वृद्धि कर मम नाश कृत्वा नीनांजनं श्रुचिः मंत्री शतमुखरिपु मंत्रेण तु जल मध्ये तं बलिं दद्यात् ॥ पवित्र मंत्री वृद्धि के करने वाले अशुभ नाश करने वाले नीरांजन को करके शात मुख रिपु मंत्र से जल में बलि दे । वीरेश्वरश्व वटुकः पंच शरो विघ्नविनायकश्च महाकाल श्चैते स्वं मुखानि पिष्टेन कार्याणि ॥ १ ॥ वीरेश्वर बटुक पंच शर (तीर पांच) और विघ्र विनायक और महाकाल के मुखों को भी पिसी हुई सिद्ध मिट्टी से बनाए । उग्राणि लोचनत्रय युतानि मूर्द्धस्थ दीत दीपानि, बहुभक्ष चरकव लयाज्य सुगंध धूपादि सहितानि इनके उस तीन नेत्र सिर पर प्रज्वलित दीपक और बहुत प्रकार के भक्ष्य द्रव्य पुष्प सुगंधित धूप है। तेनैकैकेन निचर्द्ध येन्मुखे द्रवैर मंत्रेण, ग्रह रोग महा पीड़ामप हरति बलिं जले क्षिप्तः ॥ २ ॥ चंदन घृत और ॥ ३ ॥ इन हर एक के मुखों को मंत्र पूर्वक इस बलि दव्यों से गीला करके जल में इस बलि को फेंकने से ग्रह रोग मारी पीड़ा नष्ट होती है। ज्वलित द्विद्विर्वर्ति मूर्ध्नि दीप समुज्वलं दद्यात् जिह्वाष्टक मक्षणामपष्टशतं कारयेच्चान्यत् दधि घृतमिश्रेण सुमर्दितेन शाल्योदनेन, तत्कृत्वा दुर्द्दशनं सित दंष्टं सुसिद्ध वाणीश्वरी रुपं ॥ ४ ॥ फिर पिसी हुई सिद्ध मिट्टी में दही घृत चावलों के जल को मिलाकर उससे तीक्ष्ण नख दांत और वाली सिद्ध वागेश्वरी के रुप को बनाएं । डाढ़ 11411 इनके संमुख सिद्ध दो दो बत्ती के दीपक जले हुए हों भरतक पर उज्वल दीपक रखा हुआ हो और आठ जीभ तथा १०८ आँखें हों । 959595959995९५३ P2595959595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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