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________________ PSPSPPSP595 विधानुशासन DPSPPSP596 इसके पश्चात बलि वाली उस तस्तरी को बलि द्रव्य सहित ही उस जल में डुबा कर उसे वहीं छोड़ कर पीछे बिना देखे हुए वहां से चला आए । (तीर - किनारा-निमग्र डुबोकर प्रोजझित छोड़कर) = बलिदान विधि देवी दिव्यानां चेत्यंबा अंबालिका च कूष्मांड़ी काली च महाकाली नागी कल्पा तथेव कंकाली सत्काल राक्षसी वरंजंधी श्री ज्वाला मालिनी चैव विकराली वैताली चैतासां दिव्य देवतानां तु फिर दिव्य देवियों अंबा अंबाविका कुष्मांडी काली महाकाली नग्ग लोक दाली कल्प वासनी कंकाली कालराक्षसी वरंजघी ज्वाला मालिनी किकराली वैताली इन दिव्य देवियों के लक्षण सहित मुख सिद्ध मिट्टी से बनाए । ॥ २७० ॥ कृत्वा मुखानि लक्षण युतानि सिद्ध मृतकया, तीक्ष्णो नत दंष्टा ग्राणि छत नयनानि लुठित जिह्वानि ॥ २७१ ॥ इसके तीक्ष्ण आगे निकले हुए दांत और डाढ गोल नेत्र और जीभ बाहर निकली हुई हो। कुसुमाक्षत मलयज दीप धूप वहु भक्ष युक्तानि एकैकेन मुखेन प्रति दिवस कार्येत् निवर्द्धक प्रारभ्ये चतुर्दश्यां नव दिवस सप्तमी यावत ॥ २७२ ॥ पुष्प अक्षत चंदन दीप धूप बहुत प्रकार के भक्ष व्यंजनो से इन देवियों के प्रत्येक के मुख में प्रतिदिन बलि दे, यह प्रयोग चतुर्दशी से आरंभ करके नव दिन तक अर्थात् सप्तमी तक किया जाता है । ॐ णमो भय वद्द अरिट्ठ णेमि णहाय अट्ठ महानिमित्त कुशलाय परभट्ट साहणटा ऐं ह्रीं अंबे अंबाले आम कुष्मांडी ऊर्ज्जयंत गिरि सिहरणि वासिणी सर्व विय विनाशिनी यक्षी महालक्षी ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः वज्र हस्ता अरिद्वेण बंधेण बंधामि रस्काणं जस्काणं भैरवाणं भूयाणं चोराणे शाईणीणं डाईणीणं विज्जास णाणं मुसआणं महोरगाणं आणं सत्तूर्ण आर्गणं आदि वरस्कादि बाल मित्ताणं मारीणं जरादि गाणा विवाहाणं थावर जंगम कट्टिमा कट्टिम विसाणं अणे जे के विटु ठ्ठासंभवंति तेसिं मणं मुहं दिट्ठी गींद मोसादुं कोहं च वंधामि ॐ धणु ॐ धाणु महा धणु धणु ठः ठः म्म्ल्यू ठः क्ष्मां क्ष्मीं दमूं दमों क्ष्मः क्षां क्षीं क्षं क्षौं क्षं क्षः क्षिप ॐ स्वाहा हास्वा ॐ पक्षि ॐ क्रों प्रों त्रीं ठः ठः ठः ठः ठः ठः 959595e6PSP595/१५२P/596959595955
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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