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________________ SASRISTRISTOTRIOTSIDE विधानुशासन PSDISTRISR50505 यह यंत्र क्रूर ग्रहों के समूह (निकट समूह) नव ग्रह शत्रु चोर महामारी वृक (भेड़िया-कांग-गीदड़) क्रोड़ (सूअर) करय (भैंस) कक्ष्य (हाथी) आदि से रक्षा करता है। शवयास्था अविनश्यति शक्ति भंश माश्रुशुक्षणैज्वलत: न च भवति जातु भीतिर्वजा शनि पतन वाधायाः ॥२००॥ इस यंत्र की शक्ति से अग्नि की उष्णता नष्ट हो जाती है और न उसके धारण करने से कभी बिजली के गिरने का भय रहता है। रक्षति नदी प्रवाहान्मकरा कर सलिल संकटाचैतत्, तिमि मकरोदः रात् वारि चर प्राणिनिकराच्च ॥२०१॥ यह नदी के प्रवाह समुद्र के जल के संकट तथा तिमि (व्हेल मछली) और मकर (मगरमच्छ) आदि क्रूर जलचरों के समूह से भी रक्षा करता है। जनरोद्भिन्न कुचांस्तन हीना मत मती रजो रहितां, उत्पन्न वद पत्यां बंग्या मेतद् पतं यंत्रं ॥२०२॥ इस यंत्र को धारण करने से बिना स्तनो वाली ऊंचे ऊंचे स्तनों से युक्त, बिना रजोधर्म वाली अमृत से युक्त और बंध्या बहुत सी संतानों से युक्त हो जाती है। अन्यानपि शांति कारकानि यंत्राणि संति तान्य पि धारयेत् तेषामुद्धारः ।। इसके अलावा और भी शांति करने वाले यंत्र है उनको भी धारण करना चाहिए वह कहे जाते हैं। साध्यानामापि प्रेतार्थ प्रार्थना सहितं, ॐकारादि कुरु द्वय स्वाहांतर्मध्ये लिरवेत् वहिः ॥ साध्य के नाम तथा इच्छा की हुई प्रार्थना के आदि में ॐ और अंत में कुरु कुरु स्वाहा मध्य में लिखे इसके बाहर- ॐ अहँ ऐं श्रीं ह्रीं क्लीं स्वाहा। इत्येनन मंत्रेणा चाटा तद्वहि सबिंदु टांत कूटाभ्यां संवेष्टय तदहि स्वरेरा चार्य वहि भिया क्षरेण। वलयं विधाय तदही भूमंडलं दत्वा तदनु स्वर व्यवहीतं हंस जैन संवेष्टय ठकारेण वलयी कृत्य। SSC5555105075513151९४० PASTRISTOTSIDIDISISTOISSASS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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