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________________ 0505PSP/SMSPS dugniaia Y50/505050595 तदनु सकल स्वर सहित यांत वेष्टितं कृत्वा पुनः श्वकारेणाचार्याः पुनः सकल कलान्विर्तनान्त । बीजेन वलयी कृत्य तदुन आधार वलयं दत्वा अष्ट दलांबुजे पूर्वादि पत्रेषु प्रादक्षिण्येन । ॐ अ आ बाह्यै नमः आं क्रौं स्वाहा ॐ इ ई माहेश्वर्ये नमः आं क्रौं स्वाहा ॐ उ ऊ कौमार्यै नमः आं क्रौं स्वाहा ॐ ऋ ॠ वैष्णये नमः आं क्रौं स्वाहा ॐ ल ल वाराहयै नमः ॐ क्रौं स्वाहा ॐ ए ऐं ऐन्द्रय नम: आं क्रौं स्वाहा ॐ ओ औ चामुंडयै नमः आं क्रौं स्वाहा ॐ अं अः महालक्ष्म्यै नमः आ क्रौं स्वाहा इति लिखित्वा तदनु वारि बीज सहित सप्त समुद्रान विलिखत्वा तद्बहिः स्वरांतरित हुं फट इत्यनेन वलया कारेण वेष्टियित्वा तद्बहिर्वायु मंडलं वन्हि मंडलं त्रयं च दत्वा बाहये । ॐ देवाधिदेवाय सर्वोपद्रव विनाशनाय सर्वापमृत्युंजय कारणय सर्व सिद्धिं कराय ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं ॐ ॐ क्रौं क्रौं ठ ठ देवदत्तस्या पमृत्युं धाता धातय आयुष्यं वर्द्धय वर्द्धय स्वाहा इति मृत्युंजय मंत्रेणावेष्टय भूमंडले नालं कुर्यात् . मृत्युं जिदा व्हयं यंत्र धारयेत् पूजयेत् सदा हितश्रिया युष्यो नित्यं पीड़ा दुःखादि वर्जितं ग्रहान् जयति निःशेषान् शाकिन्यो यांति दुःखतां दुष्ट मृगाश्च नश्यति यंत्रस्यास्य प्रभावतः साध्य का नाम तथा इच्छा की हुई प्रार्थना के आदि मे ॐ और अन्त में कुरु कुरु स्वाहा लिखे यह मध्य मे लिखकर इसके बाहर ॥ २०४ ॥ 11 203 11 ॐ अहं ऐ श्रीं ह्रीं क्लीं स्वाहा इस मंत्र से वेष्टित करके आचार्य उसके बाहर बिन्दु सहित टांत (ढ) कूटाभ्यां (क्ष) से वेष्टित करे 95PSPA PSR505]‹‹‹ PSV505PSR50595.
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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