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इसके पश्चात साध्य. शांतिनाथ भगवान की प्रदक्षिणा देकर उनका गंध और पुष्पादि से पूज कर जिनेन्द्र भगवान के खान के जल (गंधोदक) से गीला होकर सामने बैठे।
तद्यत्रमुपादाय प्रातः साध्यस्य व वघ्रीयात्, बाहौ कंठो वस्त्रे निस्त्रिंशको सेवा
॥ १९४ ॥
फिर गुरू प्रातः काल के समय उस मंत्र को लेकर साध्य की भुजा कमर वस्त्र या गले में बाँधे । अथ मृत्युंजय यंत्र का फल
शांतिं तुष्टिं पुष्टिं भद्र जयंमैश्वर्यमायुरारोग्यं, सौभाग्यमिष्ट सिद्धिं श्रियं च वितनोति यंत्रमिदं
॥ १९५ ॥ यह मंत्र शांति तुष्टि पुष्टि कल्याण विजय ऐश्वर्य आयु आरोग्य सौभाग्य इष्ट सिद्धि और लक्ष्मी को देता है।
अल्प मृत्यु यक्ष राक्षस भूत पिशाचास्तु शस्त्र शाकिन्यः,
शक्तैतं स्य महत्या सद्यो वैकल्प मायाति ॥ १९६ ।।
इस मंत्र की महान शक्ति से अल्प मृत्यु यक्ष, राक्षस भूत पिशाच शस्त्र और शाकिन्या सभी व्यर्थ हो जाती हैं अर्थात् साध्य को कुछ भी हानि नहीं पहुँचा सकती हैं और साध्य की सभी कमियाँ दूर हो जाती हैं।
जयति दश नाग राजान वृषलूता शालि कीट भेदांश्च, स्थावर जंगम कृत्रिम विषं च यंत्रं निहंत्येतत्
॥ १९७ ॥
यह यंत्र राज दस प्रकार के नागेन्द्रों बेल कान खजूरों और शालि कीड़ों के भद तथा स्थावर जंगम और कृत्रिम विष को नष्ट कर देता है।
भेरुंडाधान प्रबलान व्योम चर प्राणिनो न यांति, नरं यंत्र मिदं वित्राणं शरभाः सिंहाः करींद्राश्च
॥ १९८ ॥
इस यंत्र को धारण करने वाले पुरुष के पास भैरुड़ आदि आकाश चारी प्राणि शर्म (पक्षिराजअष्टापद) सिंह और हाथी आदि नहीं आ सकते हैं। (वित्रस्त डरे हुए) अर्थात् निर्भय रहते हैं।
क्रूर ग्रह निकरेभ्यो नव ग्रहे भ्योरि चोरमारिभ्यः, व्याघ्र वृक क्रोड़ कश्या आदिभ्यश्चैतदभिरक्षेत्
959595951999 १३९ 959595959
॥ १९९ ॥