________________
SASOISDISPIERSP विधानुशासन P5RISSISTRIOSITY
रक्तौभास्कर भौमो पीतौ बुध सुर गुरू शशांक
शितौ श्वेतो च शनिश्चरं राहु केतवः कृष्ण वर्ण स्युः ॥१७३ ॥ सूर्य और मंगल को रक्त वर्ण बुध और बृहस्पति को पीत वर्ण और शुक्र और चन्द्रमा को श्वेत वर्ण तथा शनिश्चर राहु और केतु के रूप को कृष्ण वर्ण का बनावें।
सुरभितर मलयजाक्षत कुसुमोज्वल दीप धूप संयुक्तै:
चरूकैनिंबद्धंयते: क्रमेण तं स्वेन मंत्रेण ॥१७४ ॥ फिर अत्यंत सुगंधित चंदन अक्षत्त पुष्प प्रज्वलित दीपक धूप फल सहित चरु (बलि) को लेकर उसको निका लिखित मंत्र से आरती करे।
ॐ ज्वालामालिनी सर्वाभरणभूषिते ग्लौं ग्लौं हाक्लीं क्लीं क्ली क्लीं ललल ल सर्वापमृत्यून हन हन त्रासय त्रासय हुं हुंदुं हूंजूंस:जूंस:फट फट घघे सर्व रोगान दह दह हन हन शीघं देवदत्तं रक्ष रक्ष नवग्रह देवते निज बलिं गृहण गृहण स्वाहा ॥
नवग्रह चरू निवर्द्धन मंत्र: एवं निवर्द्धन सम्यक चरूकं तं निक्षिपनंदी मध्य ,
स्नानोद्भवमलचरूकेण सह स्वादिश स्व मंत्रेण ॥१७५ ॥ इस प्रकार स्नान के मल से बनी हुई चरू (बलि) को अपनी अपनी दिशा में अपने अपने मंत्र से नदी के मध्य में विसर्जित कर देवे।
स्नानांतरमथ तद्वस्त्रालंकार रन कुलशाद्यांना
न्टरमै न देयं स्वयं गृहीतत्यमात्म योग्यमिति ||१७६॥ स्नान के पश्चात यसा अलंकार और रत्न कुलिश(बज़) आदि (कलशघड़े) को दूसरे के लिए नहीं क्योंकि वह अपने अर्थात् आचार्य के योग्य होते हैं, उनको स्वयं ग्रहण करें।उनको स्वयं ग्रहण करे।
परिधानु मलंकतं दत्वां वर भूषणादि तस्यान्यत,
पश्चादन्यत्र शुचौ देशे सन्मार्जिते चतुष्क युते ॥१७७॥ किन्तु अपने दूसरे वस्त्र आभूषण आदि दे सकता है उसके पश्चात दूसरे पवित्र किये हुए (चौक पूरे हुए) स्थान में (चतुष्क) आंगन या ऐसा कमरा जो चार खम्भों पर बना हुआ हो।
वघ्नातु ततः पश्चाद ग्रीवाया अस्य देवदत्तस्य,
रोगाय मृत्यु हीनं विद्या मृत्युंजयां सद्य ।।१७८॥ फिर उस देवदत्त की गर्दन में रोग अपमृत्यु को नष्ट करने वाले मृत्युंजय नाम के यंत्र को बाँधे ।