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SSIOSIS55105101505 विद्यानुशासन DIDIOSDISTRISTRISTRISE बाहर भी पूर्व के समान एक और मंडल बनाकर वहाँ पहले साधक देवदत्त को गर्म जल से खान करावे।
विनय ज्वाला मालिन्य पेता भ हुं युगं ततः,सर्वान अप मत्यु द्वितिय सं वं मं देवदत्तमम रक्ष युगं शांति कुरु कुरु सदरुण दधत निज बलिं गृह स्वाहा।।
मल चरू निवर्द्धन मंत्र: विनय ॐ ज्वालामालिनी संवं महुंडे सर्वान अपमृत्यन धातय धातय देव दत्तंरक्ष रक्ष शांतिं कुरु कुरु हे वरुण देवते निज बलिं गृह गृह स्वाहा ||
एवं निवर्द्ध मंत्री चरूकं मंत्रेण निक्षिपेन्नयां,
दिक्पाल कांच चरूकै रपि निर्वद्धटोत्स्वेन मंत्रेण ॥१६१ ॥ साधारण पूजन फिर निम्नलिखित मंत्र को पढ़ता हुआ मल से बनी हुयी मूर्ति चरू को भेंट करे और नदी में डाल देये विसर्जित कर दे और आठों के चरु को भी इस मंत्र से अभिमंत्रित करके सुंदर जल में विसर्जित कर देये।
ॐ कूट पिंड शिरिवनी सं वं मं हुं च देवदत्तस्रा शांतिं तुष्टिं तुष्टिं कुरू युगलं रक्ष युगलं च
दिग्देवते बलि गृहण मंत्र:
॥१६२॥
स एष होमांतः एवं निवर्द्ध विधिना बलिं क्षिपेत्स दिशि जल मध्ये
॥१६३॥ ॐ भल्यू ज्वालामालिनी संवंम हुं देवदत्तस्य शांति तुष्टिं पुष्टिं कुरु कुरु रक्ष रक्ष हे निज बलिं गहण गृहण स्वाहा । चरू जिवर्द्धन मंलः इसप्रकार उस चरु को देकर नदी में विसर्जित कर दे और आठों दिक्पालों के चरू को भी मंत्र से देकर विधिपूर्वक सुन्दर जल में विसर्जित कर दें।
ॐक्ष्ल्यू ज्वालामालिनी सं वं में हुं हुं देवत्तस्य शांति तुष्टिं पुष्टिं कुरू कुरू रक्ष रक्ष हे इन्द्र अग्नि राम ने प्रति वरूण वायु कुबेर ईशान देवते निज बलिं गृहण ग्रहण स्वाहा॥
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