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________________ 0505101501505125 विधानुशासन PATRISTRISIOTECISCES उद्वर्तन मंत्रः एकैकोनो द्वर्तन रस शेचनमुद्रर्त्य देवदत्तं, तं भूम्या पतितै मलातैः पुत्तलिकां कारोदकां ॥१५५ ॥ और फिर एक एक करके प्रत्येक औषधि के कलक से उस साधक देवदत्त का उबटना करे और करने से जो मल नीचे पृथ्वी पर गिरे उससे एक मूर्ति बनावे । प्रवराष्ट दिक्पाल पुत्तलिका स्व स्व वर्ण संयुक्ता लक्षण युक्तां दित्यांश्च कारटोत सिद्ध मत्तिकया ॥१५६ ॥ फिर सिद्ध मिट्टी से अपने अपने वर्ण के अनुसार सब लक्षणों से युक्त आठों दिक्पालों की दिव्य मूर्तियाँ बनावाये। सिद्धमिट्टी की परिभाषा राज द्वार चतुः पथ कुलाल करधाम भ्रमर सरि दुभय, तटद्विरद वृषभ श्रंग क्षेत्र गता मृतिका सिद्धा ॥१५७॥ राज द्वार चोरा-हा-कुम्हार के हाथ की उत्तम नदी के दोनों किनारों की मिट्टी भौरे के द्वारा लाई हुयी मिट्टी द्विरद (हाथी) वृषभ के सींगों के पड़े हुये स्थान की मिट्टी सिद्ध मिट्टी कहलाती है। असितं पीतं लोहितमसितं हरित शशि प्रभं, कृष्णं बहु वर्ण चरूकं गंधादिभिर्युक्तं ||१५८॥ काली पीली लाल काली हरी शशि प्रभं (सफेद) काली बहुत रंग याली नैवेद्य चन्दनादि से मिली हुयी नव पटलिका सुदत्वा प्रथमायां स्थापयेत् क्रमशः शेष्विद्रा दीनां प्रतिमा संस्थापर्यत कमशः ॥१५९ ॥ नौ पटड़ियों को लेकर पहिली पर उस मल से बनी हुई प्रतिमा को और शेष आठों पर क्रमशः इंद्रादि आट लोक पालों की प्रतिमाओं को स्थापति करे। बहिरपेको देशे मंडल मन्य द्वि लिरयते, च प्राश्वत तत्रोष्ण वारिणा पुरा स्नाप ये देवदत्तं ॥१६०॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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