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________________ CASTOTRADITOISO105 विद्यानुशासन PASSISTRI501510555555 तस्योपरिपुष्पाणां विधाय सन्मंडपं च तन्मध्ये, चक्र कृत रंध नवकं प्रलंब मानं घटवष्वा ॥१४९॥ इतना कार्य करने के पश्चात उस मंडल के ऊपर सुंदर भंडप (चन्दवा) तान देवे और उसके बीच में एक सा घड़ा लटका देवे जिसमें गोलाकार बराबर बराबर नौ छिद्र (रंध्र) हो। मृत्युजयारव्य यंत्रनाम समेत विलिख्य भूज्जेदले, आवेष्टय सिक्थेन च कनकेन च तत् क्षिपेत् कुंभे ॥१५० ॥ फिर भोज पत्र पर मृत्युंजय नाम के यंत्र को नाम सहित लिखकर और मोम या कपड़े में लपेट कर सोने में मढ़वाकर उस घड़े में डाल देवे मृत सहदेवी सौम्या क्षीर तरू त्वक सवर्ण हरिकांताः पिंज्वो शीर हरिद्राः दूर्वा : काश्मीर कुसुमे च ॥१५१ ॥ मलय कहा . गरू चंदन मिन्टो तान्टौषधानि, पंच दश मंत्री मंत्रं प्रपठन पृथक प्रमात्प्रेषटोत स्वं स्वं ॥१५२ ॥ फिर मिट्टी सहदेवी दूधवाले वृक्षों की छाल सुवर्ण हरिकांता पिज्ज (पिंज- कपूर) उशीर (खस) हल्दी दूर्वा (दूब) और काश्मीर (केशर) के फूल मलय (लाल चंदन) और सफेद चंदन अगर रूह (डाभ) आदि औषधियों को जल से पीसकर पन्द्रह मंत्रों में से प्रत्येक से पृथक पृथक पढ़कर अभिमंत्रित करे। सं स्नातया विभूषित वस्त्राभणैः सुवर्ण मुद्राये, दिज कन्या सुलक्षण युत या पट्टां बरे स्थितया ॥१५३ ॥ इनको स्नान की हुई वस्त्र और सुवर्ण मुद्रा आदि आभूषणों से सजी हुई अच्छे लछणों वाली तथा पट्ट और यस्त्र पर बैठी हुई द्विज कन्या से पिसवाये । अह निग्रह पुरा में स्तंभादौ पिंड संयुक्ताः, पंच दशोक्ता क्रमशस्तर तान्मंत्र येत्कलकान् ॥१५४॥ इन पन्द्रहो को (अह) सर्पो को निग्रह करने और पहले स्तंभन आदि में लगाये हुए पिंडाक्षर सहित मंत्रों से अभिमंत्रित करे कलकान (पिसे हुए कलक अर्थात पिष्टी को ) अभिमंत्रित करे। ॐ हा आंकों क्षीं ह्रीं क्लीं ब्लू द्रां द्रीं ज्वालामालिनी पंच दशौ षदायिनी प्रत्येक मुद्रतट उद्वर्तय हाँ ह्री हूँ हौं हःस्वाहाः॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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