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________________ PSPAPSPSPS विधानुशासन さらにらり फिर मंत्री उस कुंड में एक समिधा त्रिमधुर (दूध घी गुड़) की एक घी के साथ मंत्र पढ़ता हुआ अपने खुद हाथ से डाले । व्या मिश्रित शेष द्रव्याहुति में कांततः सृचा कुर्यात् प्रतिं समिध मेव विधिः समिधस्त्वष्टोत्तर शतं तस्य ॥ २१ ॥ इसके पश्चात सब हवन के द्रव्यों को मिलावे और अपने पास १०८ समिधाये रख लेवे क्योंकि यह द्रव्य प्रत्येक समिधा के साथ डालना होगा। अविकल्यासामग्ह्याध्येनैकः साधु साधितो मंत्र: तस्याल्पयापिच तथा परे पिमंत्राः प्रसिद्धंति ॥ २२ ॥ जो मंत्री एक मंत्र को पूर्ण विधि पूर्वक अच्छी तरह सिद्ध कर लेता है। उसको थोड़ी सामग्री से ही दूसरे मंत्र भी सिद्ध हो जाते हैं । मारणा कृष्टि वश्येषु त्र्यस्तं कुंडं प्रशस्यते विद्वेषोच्चाटयो वृतमन्येषु चतुरशकं ॥ २३ ॥ मारण आकर्षण और वश्य कर्मों में त्रिकोण कुंड प्रशंसनीय होता है। विद्वेषण और उच्चाटन में गोल कुंड और शेष शांतिक और स्तंभन कर्मों में चौकोर कुंड प्रशंसनीय कहा है। पलाशस्य समिन्मुख्या स्याद मुख्यापद्य स्तरोः विधान मेतत् संग्राह्यं विशेष वचनादते ॥ २४ ॥ हवन के लिए मुख्य रूप से पलाश की और उसके अभाव में दूध वाले वृक्षों की समिधा लेना चाहिये यह सामान्य नियम है। विशेष विधान में उसके कहे अनुसार ही लेना । वध विद्वेष वाटे ष्वष्टौ पुष्टौ मतानव शांती आकृष्टि वशीकृत्यो द्वादश समिधं प्रमांगुलयः ॥ २५ ॥ मारण विद्वेषण और उच्चाटन में आठ अंगुल की तथा पौष्टिक और शांति कर्म में नौ अंगुल की, आकर्षण वश्य कर्म में बारह अगुल की समिधायें लेनी चाहिये । यांईधनानि पूतानि श्रुष्काण क्षीर भुरूहां भवंति तानि काष्टानि सर्वस्मिन होम कर्मणि ॥ २६ ॥ こちらたらたらたらこらこらこらこらたらたらたらやり
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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