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________________ S5I0150151051015105 विधानुशासन 9851065DISISISADISCESS ॐ ह्रीं को प्रशस्त वर्ण सर्वलक्षण सम्पूर्ण स्वायुध वाहन वधु चिन्ह सपरिवारा सर्वे देवा आगच्छता आगच्छत संयोषट तिष्टत तिष्टत ठः ठः मम सन्निहिता भवत भवत वषट इंद जलादिकमर्चनं गृहीध्वं गृहीत्वं ॐ भूर्भव स्वः स्वधा स्वाहा । पूर्णाहूति ॥ वागंधाक्षत पुष्पायै दीपधूप फलै कमात् स्वं स्वं मंत्र जपेन्मत्रीं सप्ताचिषमथा चयेत् इसके पश्चात मंत्री क्रम से जल चंदन अक्षत पुष्पनैवेद्य दीप धूप और फल से क्रम से अपने अपने निम्रलिखित मंत्र सहित उपरोक्त देवताओं का और अग्नि का पूजन करे। ॐ दWमथनाय नमःदर्भस्थ:- इस मंत्र से दों को चढ़ाना ॐनीरजष्टनम:जलस्य: इस मंत्र से जल चढ़ाना ॐशीलगधाय नमःगंधस्टा इस मंत्र से गंध चढ़ाना ॐ अक्षता नमःअक्षतस्य इस मंत्र से अक्षत चढ़ाना ॐ विमलाय नमः पुष्पस्य इस मंत्र से पुष्प चढ़ाना ॐ परम सिद्धाय नमःचरौं इस मंत्र से नैवेद्य चढ़ाना ॐ ज्ञानोद्योतायनमः दीपस्य इस मंत्र से दीपक से आरती उतारे ॐ श्रुत धूपाय नमः धूपस्य इस मंत्र से अग्नि में धूप रखे। ॐ अभिष्ट फलप्रदाय नमः फलस्य इस मंत्र से फल चढावे। सगार्हपत्यश्चतुरन कुंडेन्यस्ते महीनाहवनीय वह्निः वृत्ते पुनईक्षिण कृष्ण यत्माप्रपूज्यान्मंत्रिभि रेवमेव ॥१८॥ चौकोर कुंड में नित्य हयम करने योग्य गार्हपत्य अग्नि की स्थापना करे और त्रिकोण कुंड में आहवनीय अग्नि की स्थापना करे और गोलकुंड में केवली में दक्षिण अग्नि स्थापना करे। अभ्यचितेनेन यथा कशानौ समीहितं होम विधिं करोतु स सय एयारिवल वांछितार्थ संसिद्धिमापादयितुं समर्थः ॥१९॥ इस प्रकार अग्नि का पूजन करने के पश्चात जो नियम पूर्वक होम की विधि को करता है यह शीघ्र ही सब इकित पदार्थों की सिद्धि को प्राप्त होता है। तरिमन प्रथम त्रिमधुर युक्तामेकां समिध स्वहस्तेन मंत्री जयादाज्यैक्षा हुतिमेकां स्तवेन ततः ॥ २० ॥ 559 48_95UFNESE ಇ
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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