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________________ 959695959595 विधानुशासन 269596959‍595 गुरु धान के चावलों से भरे हुवे अत्यंत उज्वल वर्तन को जौघौत (चांदी और सोने का बना हुआ हो उस वस्त्र के बीच में अच्छी तरह से रख देवें । तन्मृत्युजंय यंत्र जिनपति पादा बुंजाति के न्यस्तं, संस्थाप तत्र पात्रे गंधाद्यै: प्रार्चयेन्मंत्री ॥ १४१ ॥ उस समय मंत्री वहाँ जिनेन्द्र भगवान के चरण कमलों में रखे हुए उस मृत्युंजय मंत्र की स्थापना करके उसका गंध (चंदन) आदि से पूजन 'करे | ॥ १४२ ॥ एवं समभ्यर्च्य यंत्रं पश्चात्साध्यस्य तस्य विधि नैव, वसुधारास्नान विधिं शांति करें कर्तुं मीहेत् इस प्रकार पहले इस मंत्र का पूजन करके फिर उस साध्य की शांति करने वाली वसुधारा खान की विधि करे। वसुधारा स्नान विधि : ईशारामि सुखांडं पातं संयुक्त रम्यभूदेशे संमार्जिते च कपिला गोमय दधि दुग्ध यते मूत्रैः ॥ १४३ ॥ करके ईशान कोण की दिशा की तरफ मुख करके एक पवित्र रमणीक स्थान को पहले जल से शुद्ध फिर कपिला गाय के अपतित गोबर दूध, दही, घृत और मूत्र से साफ करे । नाम कला पूर्णेदु समेतं मध्ये विलिख्य तस्य वहि: कोकनद कुमुद वलय रक्तोत्पल मुकुल कुसुम युर्त ॥ १४४ ॥ इसके पश्चात उस स्थान के मध्य में नाम को आं इं ॐ ऐं बीजों के बीच में लिखे और उसके चारों तरफ रक्त कमल (कोकनद) और श्वेत कमल (कुमुद) और रक्तोत्पल (लाल कमल) मुकुल (नीलकमल) अपने अपने पुष्पों सहित । चक्रावक वलाका सार सकल हंस मिथुन संयुक्तं, कर्कट कूर्म दुर्दुर झष मकर तर तरगं युतं ॥ १४५ ॥ चक्र (चकवा) आह्न (नामका) वक (बगुला ) यलाका (सरसो की कतार) सारस और कल हंस (हंस) के मिथुन ) युगल) समेत केकडा (कर्केट) कछुआ (कूर्म) की दर्दुर (मेढ़क) मछली मकर हंस को चंचल जल की तरंगों लहरों सहित चूर्णेन पंच वर्णेन परिलिये द्विपुल पद्मनी रखंड, तस्य वहि चतुरस्त्रंमंडल मालिख्य विधि नैव ।। १४६ ॥ और बड़े बड़े कमल (पद्मनी) समूहों से युक्त पंच वर्ण चूर्ण से बनावे और उसके बाहर चारों तरफ विधि पूर्वक एक चौकोर मंडल बनाये । कोणेष्वस्य चतुर्ष प्र विकीर्य नवानि शालि बीजानि, प्रसार्य धोतं सित मंवरं तत् तेषु ॥ १४७ ॥ उस मंडल के कोणों में चंदन कुंकुम और पुष्पों से पूजा किये हुए श्वेत वर्ण वाले सुवर्ण और सुंदर शालि धान्य के बीजों से मुख तक भरे हुए घड़ों को चारों कोणों में रखे । 95e5P5PPSP59P6९३१ 6959/ 959595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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