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51050150DOTO5 विधानुशासन ISO1505TOISTORIES
अष्ट दलां बुजं प्रतिदलं द्विकलाद्यज मातृका नमः, पाश गजेन्द्र वस्य वर होम परांत मंत्रमालिरवेत् , वारिधि सतकं वहि रपि स्वर युक्त यकार वेष्टित ।
पार्थिव मंडलेन पिहितं पवन त्रितयेन वेष्टितं ॥१३४ ॥ उसके बाहर आठ दलदाला कमा लिटाकर प्रत्येक दल में आदि में दो कला अज (ॐ) लिखकर अष्ट मातृका देवियों में से एक एक को लिखकर नमः पाश (आंगजेन्द्र वश्य क्रों पर होम स्वाहा) पद याले मंत्र को लिखे फिर सात जल मंडल बनाकर बाहर स्वर युक्त ष से वेष्टित कर दे फिर पृथ्वीमंडल बनाकर तीन वायु मंडलों से वेष्टित करे।
भूर्जे नैवं लिरिवतं पत्रेण वेष्टेन तेन कनक वृतां इषन्मा त्रांनलिकां प्रवेष्टोत्तं च सूत्रेण
||१३५॥ इस यंत्र को इस प्रकार भोज पत्र पर लिखकर धागे से लपेट कर एक छोटी सोने की नाली में जड़वा लेवें।
यंत्र लाक्षा सहितं तत्कनकेनापि वेष्टत विन्यसेत.
शांति जिन पाद निकट प्रपूजितं गंध कुसुमायः ॥१३६ ॥ इस यंत्र को लाख सहित सोने में मढ़वाकर श्री शांतिनाथजी भगवान के चरण के समीप रख करके इसका गंध (चंदन) और पुष्पों से पूजन करे।
अथ सर्व शांति होमे समापिते शांति होमंच कुन्मिह
न्निरंतरं दिने प्रातः करुणा युतं मतामहाभिषेकं स्यात् ॥१३७ ।। इस प्रकार सर्वशांति होम के समाप्त होने पर प्रतिदिन प्रातःकाल के समय दया से भरकर शांति होम करते हुए महा अभिषेक
जिनस्य चैकं चतुःसंघ रचर्यन्मंडल कोणेषु
पूर्ण कुंभवें जिनस्याग्रे दीपाश्च ॥१३८॥ जिनेन्द्र भगयान का एक चौकोर मंडल बनावे उसके कोणों में जल से भरे हुए कलश रखे और जिनेन्द्र भगवान के आगे दीपक रखें।
भानु तस्य न्यस्य त्प्राग भागे तस्या भि नवं प्रवि कार्य मध्य भोग्ये, तस्याभि नवानि कलम बीजानि तेषामुपरि विशुद्धं श्वेत पट्टांवरं दद्यात्
॥१३९॥ उसके पूर्व भाग में भानु(सूर्य) के रहते समय उसके बीच भाग में नये धान के बीजों को बिखेर कर उनके ऊपर शुद्ध सफेद वस्त्र बिछा देवे।
चौतकला चौत रचितं पात्रं कलभाक्षतैः समापूर्ण पटां वरस्य तस्य न्यस्ते न्मध्ये गुरू सम्यक
॥१४०॥ S5ICISIOTERISPIRICISCISI९३० PADOSTORIEODESIDASI