SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 934
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ やらおらです Angela 95P50でらでらわす ग्रामो वृत्या वृतः स्यान्नगर मुरूच तर्गों पुरोद्भासिः शालं खेटं नद्यादि वेष्टतं परिवृत्तम भितः कर्वट पर्वतेन ग्रामैयुंक्त मंटब दलित दशशतैः पतनं रत्न योनि द्रोणाख्यं सिंधुबेला, जलधि वलयितं वाहम द्रिस्थ माहु: ॥ १२४ ॥ एक गोल रेखा से घिरे हुए को गाँव चारों तरफ पर कोट वाले को नगर -छोटी पहाड़ी से घिरे हुए को खेट चारों तरफ पर्वतों से घिरे हुए को कर्बट एक हजार ग्राभ वाले को मटंब रत्नों के स्थान को पत्तन समुद्र के किनारों से घिरे हुए को द्रोणमुख और पर्वत के ऊपर बसे हुये को संवाह या बाह कहते हैं । अथ साध्यस्यानु गुणो तारांशक वार तिथि, मुहूर्त दौ लिखितुं समारभे त प्रीते मनाः मंत्र विद्यत्र ॥ १२५ ॥ अब साध्य के गुणों के अनुसार नक्षत्र वाले अंशक वार तिथि और मूहुर्त आदि बतलाने वाले यंत्र का मंत्री के वास्ते प्रेम से आरंभ किया जाता है। नव गोमयेन शुद्धि देशे कृत्वा कचि च्चतु ष्कृणं, मंडलमभि नव शाली स्तन्मध्ये विकरे द्बहुलं ॥ १२६ ॥ किसी स्थान में नये गोबर से भूमि शुद्धि करके उसमें चोकोर मंडल बनाकर यहाँ बहुत से नये शालि (चावलों) के दानों को बिखेर देये । तेषामुपरि निदध्यात् धौतं पटांवरं नूनं ज्वलितान् धृतेन दीपान् परितः संस्थापयेतंच ॥ १२७ ॥ उनके ऊपर एक वस्त्र रखकर उसके चारों तरफ घृत के जले हुए दीप को रखकर देवे कोणेषु तस्य मलयज कम संसक्त शरक्त कृत चर्चान, अंतस्थ रत्न कनकैः संशुद्धैः पूरितान् सलिलैः ॥ १२८ ॥ उसकी कोणों में चंदन की कीचड़ से बने हुए शहाक (जल) के संग से पुते हुए अंदर शुद्ध किये हुए रत्नों और सुवर्ण से शुद्ध किये हुए पानी से भरे हुए। नववस्त्रावृत कंठान प्रवेष्टितान् सित तरेण सूत्रेण, व बीज़ पूर फल त वजनान संस्थाप येत्कुंभान ॥ १२९ ॥ 9696959591615195 ९२८ 451969595959155
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy