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सर्व सात गुणों से युक्त साध्य इन सब शांति और होम के दिनों में सब गुण युक्त अतिथियों और यतियों को
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क्षीरेण सर्पिषा दद्यानिसूप खंड सितागुडैः व्यंजनैर्विविधैर्भक्षै लड्डुका पूरिकादिभिः
॥ १११ ॥
दूध, घृत, दही आदि दाल खांड, शक्कर, गुड़, लहू और पूरी आदि अनेक प्रकार खाने योग्य व्यंजनो
स्वादुभिश्चंच मोचाम्रफनसादि फलैरपि,
उपेतं भोजयेन्मृष्टं शुद्ध शाल्यन्न मादरात
॥ ११२ ॥
स्वादिष्ट चंचु (इलायची) मोचो (सुपारी) आम फनस (कटहल) आदि फलों, साफ और शुद्ध चावल और अत्र का बना हुआ और भृष्ट (काली मिर्च आदि) भोजन आये हुए को आदर पूर्वक खिलावे !
क्षांतिभ्यः श्रावकेभ्यश्च श्राविकाभ्यश्च सादरा, वितरे दोदनं योग्यं विदध्याश्वावरादिकं
॥ ११३ ॥
उस शांति के समय आर्यिकाओं श्रावकों और श्राविकाओं को भी आदर पूर्वक भात और योग्य वस्त्र आदि देवे।
कुमारांश्च कुमारीश्च चतुर्विंशति समितान् भोजयेदनु व्रत्तेतदीनानाथ जनानपि
॥ ११४ ॥
तथा प्रतिदिन चोबीस कुमार और कुमारियों तथा दीन और अनाथ लोगों को तथा अनुव्रत धारियों को भोजन करावे
होमः कृतो जिनस्नान बलिदान पुरस्सरः, अप मृत्युन रिपुन व्याधीन प्रजानां शामवेदयं
॥ ११५ ॥
जिनेन्द्र भगवान के अभिषेक और बलिदान युक्त य होम अपमृत्यु शत्रुओं और प्रजा के रोगों को शान्त करता है।
नरमार्यश्च मार्याश्च अजमारि तथैवच, गोमा महिष मारि च खरोष्ट्राजाति पारिका:
॥ ११६ ॥
यह होम नर नारी की बिमारी घोड़ों की बीमारी, बकरों की बीमारी, और गायों की बीमारी, भैंस, गधे, ऊँट और बकरियों को
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