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________________ CP 51 विधानुशासन 59695296PPS पश्चिम की तरफ मुख करके कमलासन का प्रयोग करके ज्ञान मुद्रा से युक्त होकर अपने आसन पर बैठे देवतां मंत्रमात्मानं साध्यं लोकं तथाखिलं, शुद्धांत करणी ध्यायन् शित वर्ण सुधामयं ॥ १०६ ॥ उस समय वह देवता को मंत्र को, अपने को साध्य को तथा सम्पूर्ण लोक को शुद्ध अन्तःकरण (मन) से श्वते वर्ण का अमृत बरसाते हुए अमृत मंत्रध्यान करे अष्टाभिरधि टूटेन शतेन क्षीर भूरुहां, नवांगुल प्रमाणाभिः समिद्धिः कृत शुद्धिभिः ॥ १०७ ॥ क्षीर वृक्षों (दूध के वृक्षों) की नौ अंगुल लम्बी शुद्ध एक सौ आठ समिधाओं से गुड सर्पितिल क्षीर दुर्वाधैश्च यथा विधिः जुहुयात्सर्व शांत्या ख्यामंत्रेणा दूत शक्तिना !! १०८ !! गुड, घृत, दूध, दूब आदि से अद्भुत शक्ति वाले सर्वशांति नाम के मंत्र के द्वारा विधि पूर्वक होम करे। ततः श्री शांति महतं स्तुत्वा शांत्यष्ट केन च, ततो विसर्जनमाचार्य रेच केन समाचरेत् ॥ १०९ ॥ फिर शांत्यष्टक स्तोत्र से श्री शांतिनाथ भगवान की स्तुति करके आचार्य रेचक प्राणायाम के द्वारा विसर्जन करें। एवं संध्या त्रये चार्द्ध रात्रे च दिवसस्य यः जिन स्नानादि होमांतो विधिः सम्यग्नुसृतं ॥ १०८ ॥ इस प्रकार इस दिन की तीनों संध्याओं और अर्द्धरात्रि को भगवान की स्नान आदि से लेकर होम तक की विधि को भली प्रकार करे। तं कृत्सनं मपिसोत्साहो मंत्रि सप्त दिनानि वा, यद्रेक विशंति कुर्याद्यावदिष्ट प्रसिद्धि वा ॥ १०९ ॥ मंत्री उस पूर्ण विधि को उत्साह पूर्वक सात दिन या इक्कीस दिन तक जब तक अपना इष्ट कार्य पूर्ण हो करे । साध्यः सप्तगुणोपेतः समस्त गुण शालिमः, शांति होम दिनेष्वेषुः सर्वेष्वप्य तिथि नयतीन् 25252525252595EE4M5PSY5PSY5P5D5 ॥ ११० ॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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