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CISIONSOISSISODE विद्यानुशासन ASSISTORICISTRISTOTES
आदर्श: कलशैः छत्रैर्वस्त्रैश्रामरजैय्वजैः पुंडैक्षु दंडैZटाभिर्माणि भिगांधि रेणुभिः
।।१०१॥
अन्येश्चैवं विधैव्यैः शुभैः भुवन मंगलैः शांति भट्टारकं देवं प्रार्चयेत्परं मुदा
||१०२॥ आदर्श (दर्पणों) कलशों छत्रों, वस्त्रों चमरो ध्वजाओं ईख के पोंछों गन्णो घंटों मणियों सुगंधित गंध के चूणे और इसी प्रकार अन्य भी लोक में मंगल करने वाले उत्तम द्रव्यों से श्री शांतिनाथ जी भट्टारक का अत्यंत प्रसन्नता से पूजन करे।
मुरव विन्यस्त नीरेजान पूरितान वारिभिः शुभैः
भंगारा तस्य पादांते शांति धारो निपातयेत् ॥१०३ ॥ फिर मुख में भेरी सहित कमलों से युक्त जल से भरे हुवे कलशों से भगवान शांतिनाथजी के चरणों में शांति धारा देये।
ततः परम मंत्राधि देवतान् विमुखो भवेत् होमकुंडस्य पूर्यस्यामासीत दिशि देशिकः
||१०४|| फिर परम (श्रेष्ठ) मंत्र के स्वामी देवताओं की तरफ मुख करके होम कुंड के पूर्व दिशा में रास्ता बताने वाले गुरू बैठे
ततः साध्यश्च तत्पार्श्व स्वासने प्रश्रया ततः आसीत परमांभक्तिं दधे देवो गुरावपि
॥१०५॥ इसके पश्चात साध्य भी देवता और गुरू में परम भक्ति को धारण करता हुआ गुरू के पास अपने आसन पर बैठे ।
हुतासनस्थ मंत्रज्ञः क्रियां संधुक्षणादिकां,
विदध्यात्परि भाषायां प्रोक्तेन विधिना कमात् ॥१०२॥ फिर मंत्री अग्नि को प्रज्वलित करने की क्रिया को परिभाषा परिच्छेद में बतलाई हुई विधि के अनुसार विधि पूर्वक करे। .
पश्चिमाभि मुरवो भूत्या प्रयुक्त कमलासनः,
उपविश्य निजे पीठे संयुक्तो ज्ञान मुद्रया SASO151095TOSDISTRISTOT5[९२४ PIERISPIRICISTRATRISTD35
॥१०५॥