SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 929
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ DISTRISIRISTOT505 विधानुशासन म50505DISTRISTOISS न्यस्येत स्व स्था सनं ताभ्यां समुपेत गुरुर्जनः सादयस्य त्चा सनं कुर्यात् ताभ्यां युक्तं जलाक्षरं ॥९४ ॥ गुरू पुरुष उन दोनों घीजों से अपने आसन को रखे और उन्हीं बीजों से जल छिड़क कर साध्य का आसन बनाये | पूरकेन जिनेन्द्रस्य कांदाहवाननं गुरुः पंचा नामु पचाराणां विधि ज्ञानान्विशेषतः ॥९५॥ गुरु पूरक (सांस भरकर) से जिनेन्द्र भगवान का आह्वान करे और पाँचों उपचारों की विधि (आव्हान-स्थापन सन्निधिकरण पूजन और विसर्जन) को पूर्ण रूप से विशेष ध्यान के द्वारा करे। सुप्रतिष्ठापनं साक्षात् करणं प्रार्चनं तथा विभोः कुभंक भोगेन विधातव्याः निमंत्रिण ॥९६॥ मंत्री भगवान का स्थापन सन्नधिकरण और पूजन को कुंभक (सांस रोककर) के योग से करे। वारिभि हारिभि कांतैः श्राससंतापहारिभिः क्षौदैः प्रोत्सर्पदा मोदैश्चंद नै यणि नंदणैः ॥९७॥ शालिगैः सदकैःशालिन्पंच द्विशकैरपि, सुमनोभिः सुमनोभिः सुमनोभिः सुगंधिभिः ॥९८॥ लाये हुए सुंदर और श्रास के कष्ट को दूर करने वाले जलों उठती हुई मालाओं वाले चंदन से घ्राण (नाक) को आनन्द देने वाले क्षोद (चूर्ण) शालि (अक्षत) सदक(फलः और पचीस प्रकार के सुन्दर सुगंधित पुष्पों से अच्छे मन से अच्छी विधायों से सुगंधित से चरुभिश्वारूभिश्चित्र व्यंजनैश्वित रंजन : दीधिकाभि स्तमो हुत्या व्यापिकाभिर्दिशो दिशः ॥९९॥ धूप भैदै दि रेफांत रवेदच्छेदैः प्रमोददैः फलै, समुज्वलै: सद्य प्रोद्यत्सौरभ्यहारिभिः ॥१०॥ अनेक प्रकार से चित्त को प्रसन्न करने वाले नैवैद्य (चरू: और चारू (प्यारे) व्यंजनों से अंधकार को नष्ट करने वाले और दशों दिशाओं में प्रकाश दिलाने वाले दीपकों से भौंरों के अन्दर के खेद को (छेद) नष्ट करने वाले और धूप के भेदों से निकलती हुई सुगंध युक्त उज्जवल फलों से ಇದರಥS[833 Bಣದಾರ್ಥಗಳಿಗೆ
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy