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S5D150595952150 विद्यानुशासन PSIDDISTRISTPISODE
ज्वलत् प्रदापको देशं दूरापास्त तमस्तति, गुरूणा गुरु धुपेन वासिता तरं दिग् मुरवं
।।८८॥ जलते हुवे दीपक से दूर हुए अंधकार के समूह वाले भारी अगर की धूप से सुगंधित दिशाओं वाले।
भव्यैः पठद्भिः सूत्राणिध्यायदि रधि देवताः, शांति कृति मंत्राणि प्रजपद्भिः रधिष्ठित
।।८९॥
अर्चना द्रव्य संपूर्ण भगवत्पीठि कांतिकां, होम कुंड समीपस्थ होम साधन संपदं
॥९०॥ सूत्रों को पढ़ाने वाले, देवताओं का गान करते भाले और हानिकारक मंत्रों कोजपने वाले भव्य, पुरुषों से युक्त भगवान की पीठ के समीप सव पूजन के द्रव्यों से युक्त तथा होम कुंड के समीप होम के साधनों से युक्त
प्रविशेद होम गेहं ते साध्टोन सह देशिकः, स्नातेन स्र्वत वस्त्र स्त्रक भूषा लेपन शोभितं
॥९ ॥ हयन शाला में स्नान किये हुए श्वेत वस्त्र माला आभूषण और लेप से शोभित साध्य के सहित (देशिक) गुरू प्रवेश करे
तत्र गंध कुटी मध्ये यक्ष यक्षादिभिः सह, सूरिः प्रदक्षिणी कृत्य स्तुत्वां च प्रणमेजिनं
॥९१॥ सूरि (आचार्य) वहाँ पर गंध कुटी के बीच में प्रदक्षिणा तथा स्तुति करके यक्ष यक्षिणियों सहित भगवान को नमस्कार करे।
अग्रे च भगवतः स्थित्वा प्रसन्ने नां तरात्मनः विदधीत क्रियास्सर्वा सकली करणादिका
॥९२॥
उपांतं भातं विंदुभ्यां बीजाक्षर मुदत्ततः आसनं मंत्रं विन्मत्रैः देवतायाः प्रकल्पयेत्
॥९३॥ फिर भगवान के सामने प्रसन्न मन से बैठकर सब सकली करण आदि क्रियाओं को करे मंत्री समीप में ही देवता के (भान्त) म और विन्दु (ह) मकार अनुस्वार सहित ७ मं ) बीजाक्षरों रूपी मंत्रो से आसन देवे (उपान्त =पास में ) OSD510151015015106535९२२ PHIRISTOISTORISD15959ISS