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________________ PHP695 विधानुशासन 259595295955 तत्सनार्थावि निर्गच्छे बदलि दानाय मंत्रवित् छत्र चामर सत्केतु शंख भेयादि संपदां ॥ ८१ ॥ फिर मंत्री सनाथ हुवे के समान बलि देने के लिए निकले छत्र चमर ध्वजा शंख और भेरी (नगाड़े) आदि की संपदा के सहित चतुष्पथेषु ग्रामस्य यतनस्य पुरस्य च राजद्वारे महाद्वार्षु देवता यतनेषु च ॥ ८२ ॥ गाँव वतन (मुख्य गाँव ) और नगर के चौराहे राजद्वार बड़े द्वारों और देवताओं के मंदिर में स्थंवर माणां स्थानेषु तुरंगाणां च धामसु, बहु सेवेषु तीर्थेषु वरतां सरसामपि चरूणां पंच वर्णेन गंध पुष्पाक्षतैरपि, यथा विधिवलिं दद्यात् जल धारा पुरस || 23 || ॥ ८४ ॥ घूमने वालों के स्थानों में घोड़ों के घरों में बहुत पुरुषों से सेवित तीर्थों में चलने वाली तालाबों में पांच वर्ण के नैवेद्य गंध (चंदन) पुष्प और अक्षत से विधि पूर्वक जल धारा सहित बलि देवे। अनुष्ठितो विधियों यं पूर्वान्ह भिष वादिकः मध्यान्हे च प्रदोषे च तं तथैव समाचरेत् ॥ ८५ ॥ जो यह अभिषेक आदि की विधि प्रातःकाल में की है उसको दोपहर और प्रदोष (रात्री) के समय में भी उसी प्रकार करे । अथार्द्ध रात्रे संप्राप्तं मंत्रि शांति क्रियोचितैः प्रारभेत शुभो दर्क शांति होम क्रियांमिमां ॥ ८६ ॥ इसके पश्चात् मंत्री आधी रात के आने पर शांति की क्रियायों के होम की योग्य उस उत्तम जल वाली शांति हों की क्रियाओं को आरंभ करे । संमृष्टं शुद्ध गंधाभ: सेकेन सुरभि कृतं, आवि सुमनो दाम शोर भा कृष्ट षट्पदं ॥ ८७ ॥ साफ किये हुए शुद्ध सुगंधित जल के छिड़कने से सुगंधित बनाये हुए लटकने वाली फूलों वाली फूलों की मालाओं की सुगंधि से खिंचे हुए भ्रमरों से युक्त (अलि) भ्रमर घटपद (अमर) को कहते हैं । 195 ९२१5959595969595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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