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________________ CSIRTHRISTRISTRI5T5 विधानुशासन VSCIERISTOTSTRADISE अन्त में गुरू हृदय से प्रसन्न होकर जिनेन्द्र भगवान के स्नान के जल को अर्थात् गंधोदक को सर्व शांति मंत्रो से अभिमंत्रित करके उसे साध्य के ऊपर डाले। सिंचेच्चोपरि तैरेव पुर ग्राम निवासिना नणां, गजानामश्वानां महिषाणां गवामपि || ७५ ॥ फिर उस गंधोदक को नगर और गाँव के निवासियों राजाओं. हाथियों भैसों और गायों के ऊपर भी छिड़के। अजोष्ट्रा विरवरादीना मन्येषां प्राणिनामपि, उपरिष्टाजिन स्नान जलस्तै सेक माचरेत् ॥ ७६॥ बकरे ऊँट आवि (भेड़) गधे आदि तथा अन्य प्राणियों के ऊपर भी जिनेन्द्र भगवान के समान के जल को डाले। पश्चात् सितेन वस्त्रेण सितया पुष्पमालटा, सितेन चोत्त रीयेण भूषितं दद्यतो वपुः ॥७७॥ इसके पश्चात् सफेद वस्त्र और सफेद फलों की माला तथा सफेद चादर से शोभित शरीर को धारण करते हुए। बलि की विधि चर्चित स्याक्षतो पेते मलयोद्भव कदमैः ब्रह्म सूत्रं दद्यानस्य मुक्ता फलमटां शुभं |७८॥ विचित्र रत्न निर्माण सर्वाभरण शारिणः, सर्वलक्षण युक्तस्य सम्यग्दृष्टे भवपुसः ॥७९॥ घिसे हुए चंदन की कर्द (कीचड) से पुते हुए अक्षत लिये हुए और उत्तम मोतियों से युक्त ब्रह्म सूत्र (यज्ञोपवीत) को धारण किये हुए और विचित्र रत्नों के बने हुए सब आभूषणों को धारण किये हुए और सब लक्षमों से युक्त उत्तम रूप वाले अच्छे शरीर वाले किसी भारी सम्यगदृष्टि युक्त कस्य चिच्चाट रूपस्टा पंसः सदगात्र धारिणः सर्वान्ह यक्ष सोशीर्ष मूर्द्धन्या रोपवेत्ततः पुरूष के सिर पर सर्वान्ह यक्ष को आरोपित कर देवे (स्थापित करे) ॥८ ॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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