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________________ 959595959S विधानुशासन 9595959555 श्री शांतिनाथ जी जिनेश्वर का मुख कमल चन्द्रमा के समान निर्मल है, वे प्रभु शील गुण प्रत तथा संयम के पात्र हैं अर्थात् उनमें गुण पूर्णतया निवास करते हैं। प्रभु की देह में एक सो आठ शुभ लक्षण है; प्रभु के नेत्र कमल समान सुंदर है- ऐसे श्री शांतिनाथ जी की मैं स्तुति करता हूँ । पंचमप्सित चक्र धराणां पूजितमिदं नरेन्द्र गणेश्च शांति करंगण शांतिभीप्सु षोडश तीर्थकरं प्रणमामि : ॥ ६२ ॥ भगवान शांतिनाथ पाँचवें चक्र व्रती में उनकी इन्द्र समूह और बत्तीस हजार मुकुट बद्ध राजा पूजन करते थे, चतुर्बिध गणों की शांति चाहने वाला मैं शांति करने वाले सोलहवें शांति जिनेश्वर की वंदना करता हूँ । दिव्य तरुः सुरपुष्प वृष्टि दुभिरासन योजनयोषी. आतपतारण चार युग्मे यस्य विभाति च मंडल तेजः ॥ ६३ ॥ तं जगदर्चित शांति जिनेद्र शांतिकरं शिरसा प्रणामामि सर्व गणय तु यच्छतु शांति मह्य मरं पठते परमां च ॥ ६४ ॥ अशोक वृक्ष देव कृत पुष्प वर्षा दुन्दुभि आदि बाजों की ध्वनि सिंहासन एक योजन तक दिव्य ध्वनि का फैलना तीन छत्र दो चामरेद्रों से प्रभु पर ठुरे जाने वाले दो चामर तथा मामंडल ऐसे आठ प्रतिहार्य जिनके विशेषरूप से शोभायमान हो रहे हैं- उन त्रैलोक्य पूजित शांतिनाथ जिनेश्वर को मैं मस्तक नम्र करके नमस्कार करता हूँ। शांति नाथ जी संघ को तथा स्तुति करने वाले मुझे भी मोदारूपी शांति प्रदान करे संपूज्यकानां प्रति पालकानां यतीन्द्र सामान्य तपोधनानां. देशस्य राष्ट्रस्य पुरस्य राज्ञः करोतु शांति भगवान जिनेन्द्रः ॥ ६५ ॥ पूजा करने वाले और पूजन करन वाले सेवा भक्ति करने वाले आचार्यादि गणधर सामान्य मुनि मनुष्य आदि सभी के तथा देश राष्ट्र नगर वासी आदि सभी जीवों के राजा के सभी उपद्रवों से शांति करो हे जिनेन्द्र देवशांति करो। येभ्यर्चिता मुकुट कुंडल हार रत्नै शक्रादिभिः सुरवरैः स्तुत पादपद्मा, ते जनाः प्रवर वंश जगत्प्रदीपास्तीर्थं करास्सत शांतिकराः भवंतु ॥ ६६ ॥ जो तीर्थकर पूजने योग्य है और जिनकी इंद्र मुकुट कुंडल हार और अनेक रत्नजड़ित सोलह आभरण सहित हैं अर्थात् यह तीर्थंकर इद्रांदि व देव समूह से स्तुतियंत है वे समस्त तीर्थंकर मेरे भगवान जो श्रेष्ठ वंश में उत्पन्न हुए है और जो समस्त पदार्थों को दिखाने वाले चिराग के समान है; यह चौबीसों तीर्थंकर हमारे शाश्वत कल्याण करने वाले हों। 2505051 525R PSPS2525252525
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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