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CASIOISSISTRISTOSTED विधानुशासन PSIRISTRISTOT5R5E5I
सलिलैः कलिल ध्वंसैश्चंदनै धाण नंदनैः,
अखंडैस्तंदुलैः शनैः सुमनोभिः सुगंधिभिः फिर पापो को करने वाले जल भार को प्रसन्न करने वाली गंध (चंदन) उज्ज्वल बिना टूटे हुए चावल और सुगंधित पुष्यों।
उद्गांधिभिर्वरायोभि दीपिकाभिः सुदीप्तिभिः,.
धूपै निधूपिता होभि फलैः सन्मार्ग संफलैः ॥५६॥ ऊपर की गंध निकालते हुए नैवेद्य भली प्रकार जलाए हुए दीपक पापों को जलाने वाली धूप और अच्छे भार्ग रुप सफल करने वाले फूलों
भंगार मुकुट छत्र पालिका प्वज वासरै:घंटा, पंच महा शब्द कलश व्यंजनांचलै:
॥ ५७॥ झारी (भुंगार) दर्पण (मुकुट) छत्र पालकी (पालिका) ध्वजा वस्त्र (वासर) बड़ा शब्द करने वाले पांच घंटों व्यंजनों से भरे हुए कलशों (अंचल)
सद्यं चूर्णमणिभिः स्वर्ण भौक्तिकदामभिः, बेणूबेणादि वादितै गीतैनत्यैश्च मंगलैः
॥५८॥ अच्छी गंध याले चूर्ण, मणियों, सोने और मोतियों की मालाओं, बांसुरी बीणा तथा बाजों तथा नृत्य गीत आदि मंगलों से।
भगवंतं समभ्यचर्य शांति भट्टारकं ततः, तत्यादाबू रुहो पाते शांति धारां निपातयेत्
॥५९॥ भगवान श्री शांतिनाथजी भट्टारक का पूजन करे फिर उनके चरण कमलों में शांति धारा देवे।
ततः शांति जिनेन्द्रं तं मूर्धन्यस्तकरः स्तुयात् :
मंत्री शांत्याष्टाकाररस्टोन मंत्रेणानंद निर्भरः ॥६०॥ इसके पश्चात् मंत्री मस्तक पर हाथों को रखकर आनंद से भरा हुआ होकर शांत्यष्टक नाम के स्तोत्र से उन भगवान शांतिनाथजी की स्तुति करे।
शांति जिन शशि निर्मल वर्क शील गुणव्रत संयम पात्रं अष्ट शतार्चित लक्षण गात्रं नौमि जिनोत्तम मंबुज नेत्रं ॥६१॥