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STERISTIRISTOT585 विद्यानुशासन RSSRISRISTSISIOS
सूत्रेण स्वेत वर्णेन विश्रद्धेनाभि वेष्टितैः, शाल्यक्षत परिष्कक्त सांद्र चंदन चर्चि तै:
॥४८॥ अंदर रत्न तथा पुष्पों के सुगंधित चूर्ण से भरे हुए मुख के भाग पर रखे हुए बीजपूर (विजोरे) आदि से युक्त सफेद रंग के शुद्ध धागे से वेष्टित शालि चावलों से सने हुए चंदन से पुते हुए।
गंधाकृष्ट भ्रमझंग पुष्प मालाविभूषितैः, गंधैन नूतन सशस्त्र वि हिताच्छादनकिटौ:
॥४९॥ शद्धायां प्रविकीर्णेषु वसधायां यथा विधिः,
शालिषु स्थापितैः सम्यक न्टास्त स्तस्तिक शालिष ५०॥ सुगंध से जिससे भोरे खिंच रहे हैं ऐसी भौंरों वाली पुष्प मालाओं से सजे हुए सुगंधित तथा नये उत्तम वस्त्रों से ढके हुए शुद्ध पृथ्वी पर रखे हुए शालि में विधि पूर्वक बने हुए स्वस्तिक के ऊपर अच्छी तरह रखे हुए।
सौवर्ण राजतै स्तामैः मन्मयैर्वा सलक्षणैः, अष्टोत्तरेण कलशैः सहस्त्रेण शतेन वा
शांति भट्टारकं टाक्ष टाक्षी वाग्दे वता मषि, पूर्वयद् यजनिःशेष जगत शांति विधायिनं:
॥५२॥ सोना, चांदी, तांबे या मिट्टी के सब लक्षणों वाले एक हजार आठ या एक सो आठ कलशों से शांति के करने वाले भगवान शांतिनाथ जी और यक्ष यक्षी या देवी सरस्वती (जिनवाणी) और ऋषि (मुनिराज) का पूर्व के समान अभिषेक करे।
तेतागंध कुटी मध्य स्थापित सिंह विष्टरे, तत्र शाल्यक्षत न्यस्त श्री वर्ण स्थापटोजिनं
॥५३॥ फिर गंध कुटि के बीच में सिंहासन के ऊपर श्री अक्षर शालि अक्षत के पुंज (ढेर) सख्ख कर जिनेन्द्र देव की स्थापना करें।
स्ता संस्थापटोद्भत्तया यक्ष यक्षीं सरस्वती, विधिना पूर्वयुक्तेन मंत्री भगवतो तिके
॥५४॥ इसके पश्चात मंत्री अगवान के समीप पूर्वोक्त विधि से भक्ति पूर्वक यक्ष यक्षी और सरस्वती की स्थापना करे।
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