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________________ SASIRIDIOSDISTRICT विधानुशासन RISTOTRIOTSPSISTSIDESI श्री सौभाग्यं पर परोदय परं पुण्यं पवित्रं पर, यामानंतरु जाजरा पहरणं भव्य प्रजानां सदा ||६७॥ त्रैलोकेद्रं तिरीट कोटि विल स द्रत्न प्रभा पाटलं, शांतीशश्चरण द्वय दिशतु नः सन्मगलं मंगलं ॥६८॥ राज्ञश्चामुष्य वृद्धिं रणभुवि विजय शत्रु नाशं च कुर्यात्, यद्भद्रपाल नाभ्यं वहु विद्यम सकृचिंतित चेष्टितं वा, ॥ ६९ ॥ तत्तत्वं वः समस्तं मुनि गण जप होमार्चना पाम योग स्वाध्यायादि विघ्न्या क्षमयति च महा व्याधिभितिं च सर्वाः ॥७॥ श्री शांतिनाथ स्वामी लक्ष्मी सौभाग्य के देने वाले हैं श्रेष्ठ हैं दूसरों का श्रेष्ठ उपकार करने वाले हैं पुण्य को बढाने वाले हैं बहुत ही श्रेष्ठ हैं पवित्र स्थान है भव्य प्रजाजनों की सर्वदा अनंत रोग वृद्धावस्था आदि को हरण करने वाले हैं, तीनों लोक के स्वामी हैं और करोड़ों सूर्य और रत्नों जैसी गुलाबी प्रभा वाले हैं शांतिनाथ स्वामी के चरम युगल सत्य मंगल है पापी को गलाने वाले और मंगल को लाने वाले हैं। राजा की आयु बढाने वाले है युद्ध में विजय दिलाने वाले है और शत्रुता को नष्ट करने वाले है जो जो भूपाल स्वामी बहुत तरह की चिन्ता करते हैं व इच्छा करते हैं वह देते हैं समस्त मुनि गण, प्रायक गण, जाप पूजन व इच्छा होम आदि के योग्य तथा स्वाध्याय आदि करते रहे उनकी महा व्याधिया सर्वप्रकार के भय नष्ट होते रहेंगे तथा पाप नष्ट होते रहेंगे। ग्रथान्तरे क्षेमं सर्व प्रजानां प्रभवतु बलवान्धार्मिको भूमिपाल: काले काले च सम्यक वर्षतु च मद्यवान्त्याधयो यान्तु नाशम् ॥७१॥ दार्भिक्ष चौर मारी क्षणमपि जगतां मारम भजीव लोके, जैनेन्द्रं धर्म चक्रं प्रभयतु सततं सर्व सौरव्य प्रदाभि ॥७२ ।। सर्व प्रजा का कल्याण हो राजा शक्ति शाली और धार्मिक हो समय समय पर वृष्टि हो सब रोगों का विनाश विश्व में दुर्भिक्ष न पड़े चोर और भारी रोग का दर्शन भी किसी को न होवे त्रैलोक्य में अनन्त सुख को देने वाले जिनेन्द्र प्रति पादित उत्तम ामादि दश धर्मों का समूह अखण्ड रीति से सर्वत्र प्रसार को प्राप्त हो।
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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