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सक सिंहे भे वषां भोज व्योम हंस गरुत्मतां,
आकारैलिरिवतैः स्थाप्याः समुपेताः पताकिकाः ॥२०॥ फिर वहाँ पर (क) माला सिंह (इभ) हाथी (वृष) बैल (अंभोज) कमल (व्योम) आकाश हंस गुरुवात कराड़ के ED *क साकको रा.पि:: का।
सूरिदितय पीठस्य महादिक्षु पथक पटक, बानी यादष्ट तत्पीठ प्राचये च्य समंततः
॥ २१ ॥ आचार्य इस पताकों को दूसरे पीठ की आठों दिशाओं में पृथक पृथक बांध कर फिर उसका पूजन करे।
अंत्यस्थी परि पीठस्य कल्पो लोचन प्रियां, श्रीमद्रंध कुटी चित्रां सर्व लोकै कमंगला
॥२२॥ आखिरी ऊपर के पीठ के ऊपर नेत्रों को प्रिय लगने वाले चित्रों से चित्रित सर्वलोक के मंगल स्यरूप श्री गंध कुटी को बनाए।
तस्याः प्रपंचो द्रष्टव्यः सर्वोप्य स्थाटिकविधी, अनत्यति महे त्वेन नास्यामिरभिधीयते
॥२३॥
अंतस्तस्यां : शुभं मुक्ता मंडपं पुष्प मंडपं, चंद्रोपकं वा वधीयात् नेत्रैः कांत विलोभनं
॥२४॥ उसका वर्णन सर्योप स्थायिका की विधि में देखना चाहिए , यहां विस्तार के भय से नहीं कहा गया है, उसके अंदर चंद्रमा के समान सुन्दर नेत्रो को लुभाने वाले मोतियों के मंडम और फूलों के उत्तम मंडप को बांधे।
पारायं तस्य पीठस्य मूदिन केशरिविष्टरं, स्थापये च्चामरैः दौर शोक नाभिशोभितं
॥२५॥ उस पीट के ऊपर (केशरि) सिंह के आकार वाले आसन तथा अत्यंत शोभित, चमर, छत्र और अशोक की बादरवार की स्थापना करे।
घंटिका सुमनो दाम मुक्कामालाफलोत्करैः, अन्यैश्च मंगल द्रव्य मंडप तदविभूषोत
॥ २६॥ फिर उस मंडप को घंटियों फूलों की मालाओं और मोतियों की मालाओं फूलों के समूह और दूसरे भी मंगल द्रव्यों से सज़ाएं।
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