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________________ SPSPS93 विधानुशासन PPP एड फिर उसको बड़ी प्रसिद्ध तीर्थ रूप नदी से लाए हुए उत्तम जल और कपिल गाय के गोबर से भी शुद्ध करें। ततो गंधोदकैः सांद्र चंदना क्षोद में दुरै:, विद्यतं मंडपं सिंचेत् शुद्धि मंत्राभि मंत्रितैः ॥ १४ ॥ फिर उस मंड़प को शुद्ध मंत्रो से अभिमंत्रित चंदन कूट में दूर (काकोली) आदि सहित गंधोदक से सिंचन करके धोए । परिभाषा समुदेशे समुदिष्टेन लक्षणात्, तन्मध्ये कारयेत् कुंडं शांति होमं क्रियोचिंत ।। १५ ।। उसके पश्चात् उसके बीच में परिभाषा परिच्छेद में कहे हुए लक्षणों के अनुसार शांति के होम की क्रिया के योग्य होम कुंड को बनाए । मंडपे तत्रतं कुंड़ मपरेण प्रकल्पयेत् उपर्युपरि पीठानि वृत्तानि त्रीणि मंत्रवित् मंडप में उस कुंड से थोड़ी दूर गोल गोल तीन पीठ मंत्री बनवाए। ॥ १६ ॥ एक हस्तोर्द्ध हस्तश्च द्वि पादश्च तदुच्छ्रितिः द्विहस्त सार्द्ध हस्तक हस्तास्ति द्विस्तृतिः क्रमात् ॥ १७ ॥ उन पीठों की ऊँचाई क्रम से पहले की एक हाथ दूसरे की आधा हाथ और तीसरे की (दोपाद) चौथाई हाथ की हो, उन पीठों की चौड़ाई दो हाथ डेढ़ हाथ और एक हाथ हो । दधानस्योतमांगेन धर्म चक्रं स्फुरद्युतिः, अर्चा सर्वान्ह राक्षस्य च तस्त्र कारयेत् सुधीः ॥ १८ ॥ पंडित पुरुष अपने उत्तम अंग अर्थात सिर पर प्रकाशित कांति के धर्म चक्र को धारण करने वाले सर्वान्ह यक्ष का पूजन कराए। तेषा माद्यस्य पीठस्य महादिक्षु यथा विधिः, ताः शुभा स्थापयेन्मंत्री समंतादर्चयेत्ततः ॥ १९ ॥ फिर मंत्री उन पीठों में से पहले पीठ की चारों ओर की दिशाओं में उन उत्तम की स्थापना करके उनका पूजन करे। 95252525DS P5९१. P/59695959529595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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