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01505IDIEOSEX505 विधानुशासन V/5052501505OTI पकाकर, मातुलिंग (विजोर) के फल में पंखे विजौरे का मुख उसी से बंद करके, थोड़े से उपलों की अग्नि में पुट देकर, उस भस्म को उसमें से निकाल कर, बराबर के तेल में मिलावे । इसमें से सुई के मुख पर आने लायक थोड़ी मात्रा में नागर बेल के पान में खावे इस योग को सदा सेवन करे । तथा ऊपर शीतल चीजों का प्रयोग करे तो पुरूष का मेहन गधे के समान बड़ा य दंड के समान निवारण होने वाला बन जाता है।
विज्ञातो चोर सेनादिकानां संस्तंभार्थः संविधान प्रपंचः,
रो नाशेषो मंत्रिणा तस्य लोके किं किंचिन्नैवा साधनीयं समास्ति ॥५॥ इसप्रकार जो पुरुष चोर सेना आदि के स्तंभन को विधिपूर्वक जानता है उसके लिये लोक में कुछ भी असाध्य नहीं है।
एतत् क्षुद्र त्रितयम शुभ मंत्रिणोच्चाटनोद्यं, प्रोक्तं कार्य त्रिभुवनमिदं रक्षतः सर्वदुःश्यात्
॥६॥
धर्मस्योपद् वमतितरां कोपि जैनस्य, कुर्वन्नधित् शक्यो दिमिरिया गिग्रहीतुं
॥ ७॥ यदि मंत्री के द्वारा किये हुवे इस उद्याटन आदि तीन कर्मक्षुद्र और अशुभ को करते हुए तीन लोक के सय दुःखों से रक्षा करते हुए जैन देवता का तथा धर्म के ऊपर उपद्रव होने से क्रोध बढ़ जाये तो उसको कोई नहीं दबा सकता है।
अथ प्रशांते सतितत् क्षण कर्तस्मिन् उपद्रवे तत्क्षणमेव मेव मंत्री,
तत्पाप शांत्यै विविधानि कुर्यात् पुन्यानि कम्माणि बहूनि भूयः॥ ८॥ मंत्री इस उपद्रव के शांत होने पर उसी क्षण उसकी शांति के लिए अनेक प्रकार के पुण्य कर्मों को बार बार करे।
इति एकोनविंश समुद्देश:
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