________________
CTERISTRITICISTRATION विद्यानुशासन PADRISTOTSTRISTRISTRASI
| श्री पार्श्वनाथाय नमः |
अथः शांतिं प्रवक्ष्यामि यद्विधानाम्नपस्य च
प्रजादीनां प्रशाम्यति रोग भारिरिपु ग्रहाः अब उस शांति विधान का वर्णन किया जाता है जिसके प्रभाव से राजा और प्रजा के रोग भारी शत्रु और ग्रह की शांति होती है।
वोऽत्र सर्व शांत्यर्थ सप्तनीरांजनानि च, ग्रह शांतिं च बंधेन वद्रस्य च विमोक्षणं
॥२॥ इस संबंध में यहाँ सब कार्यों की शांति के वास्ते सात नीरांजन (आरती) ग्रहों की शांति और बंधन से छुड़ाए जाने वाले उपायों का वर्णन किया जाएगा!
अधारमेत साध्यस्य शुभ तारोदयादिषु, अनुकुलेषु सर्वेषु सर्वशांति क्रियां गुरुः
॥३॥ गुरु साध्य के उत्तम नक्षत्र आदि के उदय तथा सब ग्रहो के अनुकुल होने पर सर्व शांति की क्रिया को आरंभ करें।
शांति भट्टारक मानबलिदान पुरस्सरः, होम संपन्नं टांत्र धारणं चेति सा मता
॥४॥ शांतिनाथ भट्टारक (भगवान) का अभिषेक बलिदान होम स्नान कराना और यंत्र धारण करने की क्रिया शांति क्रिया है।
आदौ शांति जिनेन्द्रस्य कारयेन्मंगलोत्तम,
महाऽभिषेकमाचार्य: महा चरुकं संयुतं आचार्य आदि में महान नैवेद्य लिए हुए शांतिनाथ भगवान के उत्तम मंगल वाले महान अभिषेक को कराए।
कल्पटो द्विधि बद्भूमौ शद्धायां शुम दारुभिः, अष्ट हस्त प्रमायाम विस्तारं होम मंडपं
॥६॥ फिर श्रुद्ध भूमि में उत्तम लकड़ियों से आठ हाथ लम्बा चौड़ा होम का मंडप विधिपूर्वक बनावाएं।
ಇಡಗಣರಥSecಥಳದಣಥಗಳಡ