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________________ PSP59SPSPSS विधानुशासन 959595959‍595 (नागरमोथा के रस में ) मधुयष्टि (मुलेठी के रस में ) वरी (सतावरी के रस में ) बाजरी ( कोंच के बीजों के रस में ) भुजंगयष्टि (सर्पाक्षि) के उदक (जल) में भी सात सात भावना देवें इसके आधे भाग के बराबर अहि फेन (अमल) डालकर एक माह तक सुरपुष्प (लौंग) के रस में चंदन के कोठे अकरकरा, पीपल, श्रावणी (मुंडी) कटुरसे (कायफल) के रस में अलग अलग भावना देकर घोटे | फिर कुंकुम (केशर के रस में ) और नाभिज (कस्तूरी) को द्रव करके (पानी से पीसकर ) घोटे | इस तरह तैयार किया हुआ यह रसराज श्रेष्ठ है। यह कामिनी के मद को विधुनन नष्ट करने में दक्ष (समर्थ) है। इस रसराज में से दो मासा भर शक्कर और शहद के साथ मिलाकर चाटने से संभोग में स्त्री रमण करने में स्तंभन करता है। इस रस का सेवन पर रात्रि में थोड़ा सा ही दूध का भोजन करे । रस सेवन करने के पीछे तीसरे पहर के खतम होने पर कांता (स्त्री) का सेवन करे, जो सुंदर वस्त्रों वाली हो मोटे स्तनों वाली हो, सुंदर (कमनीय) गात्र (शरीर) वाली हो और रति को उत्सुक हो, जिसकी आँखें व वाणी दोनों से उत्सुकता (विलोल) प्रगट हो विशद (बहुत सफेद) हार पहने हुए हो ऐसी स्त्री का सेवन करे। यदि इसप्रकार की स्त्री को सेवा मिल जावे तो फिर काम से क्या, स्त्री के चंद्रमा से क्या, अन्य आवश्यकताओं से क्या, ठंड देने वाले चंद्रमा से क्या, पुरूष कोयल से क्या, तथा मधुरूप वसंतऋतु से क्या, अथवा काम को उद्दीपन करने वाले और सेवन कराने वाले साधनों से क्या प्रयोजन है। यदि महान मद के आलस्य से भरी हुई तथा मोटे मोटे स्तनों से व्याप्त सहस्र तरुणी स्त्रियाँ हो तभी रसेंद्र का सेवन करना चाहिये अन्यथा यह विकार करने वाला रस होगा। जाती फलार्क करहाट लवंग सुंठी कंकाल केसर कणा हरि चंदनं च, एतत्समान महिफेन समहिचाभ्रमत्युग्र काम जननं नहि बिंदु पातः ॥ १० ॥ जायफल अकरकरहा लोंग सूंठ कंकोल (शीतल मिरच) केशर कणा (पीपल) चंदन सब समान भाग इन सबके बराबर अफीम और सबके बराबर अभ्रक भस्म यह अत्यन्त काम को तेजी से उत्पन्न करता है और वीर्य क्षय नहीं होता है। वरी विदारी वाराही गोक्षुरी क्षुरीक्षुर यष्टिका, अश्वगंधाक्षिति सुता माष मो चरसा ह्वया प्रियालमज्जा खर्जूर नालिकेरफलानि च, वानरी बीज कदली द्राक्षा धात्री तिला समाः 05252525252505E-PS050 ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ やらゆらゆら
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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