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________________ 95PSPSPSPSPSN विद्यानुशासन 25PPSP59595 सूत हेम भुजंगाभ्रयंगकाः कांत तार विपलाः समाक्षिकाः, भागवृद्धि मिलितां विमर्द्दिता धूर्त पत्र विजया सलिलेन ॥ २ ॥ सप्त सप्त चपलामृतवल्ली शाल्मली सुरसजालजतोयैः, वारिवाहा मधुयष्टिका वरी वानरी भुजंग यष्टयुदकेन अर्द्धभागमहिफेनक न्यासन् मासान्मर्द्दयेच्च सुर पुष्प रसेल, चंदनार्क करहाट पिप्पली श्रावणी कटुरसैः पृथगेव ॥३॥ कुंकुमैन च ततो विभावयेन्नाभि जाद्रवयुतो विमर्द्दयेत्, सिद्धिमेति रस राडयं शुभः कामिनी भदविधूनन दक्षः ॥ १॥ ॥ ४ ॥ शर्करा मधुयुतो द्विभाषक: स्तंभ कृन्निधुवने वनितानां, संसेव्यः सूतेननु रात्रि भोज्यं कुर्वीत पेयं लघुमेव केवलं ॥५॥ तृतीय यामे रस सेवनं च कृत्वा निशायां प्रहरं व्यतीत्य, सेवेत कांता कमणीय गात्रां धन स्तनीमुज्वल चारू वस्त्रां ॥ ६ ॥ रतिस्तकां कतर लोल नेत्रा विशद विलोल हारावलिमादधाना, किं कामेन तु कामिनी मलयजेना वश्यकेना शुकिं किं चंद्रेण परेण ॥७ ॥ सहश्र सः संति यदा तरूणयो महालसा पीन पयोधरा ठताः, तदा रसेन्द्रः परिसेवनीयो विकारकारी भवती है नान्यथा परोपलाएज हिना पुंस कोकिलेनाशुकिं किंचान्यै मधुभि वसंत, समये किं दीपनैः सूत राडित्येवं यदि सेव्यते किम परैः कोमापल विद्य प्रदैः 11211 ॥ ९ ॥ सूत ( शुद्ध पारा ) हेम (सोना भस्म ) भुजंग (शीसा भस्म ) अभ्र (अभ्रक भस्म ) वंग ( राग की भस्म) तार (चांदी की भस्म) विपला (चादीमाक्षिक भस्म) माक्षिक ( सोना माटवी भस्म) को एक एक भाग बढ़ाकर लेवे। इनको मिलाकर धतूरे के पत्तों के रस में विजया (भांग) के सलिलेन (रसमें) सात सात भावना देकर घोटे । चपला (पीपल) अमृत वल्लि (गिलोय) शाल्मली (सेंमर की जड़ के रस में ) सुरसी (तुलसी के रस में) जलज तोय (कमल के फूल के रस में ) वारि याहा 95959595959595 ९०४P/51959696959595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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