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________________ CRICKETSHAKRISHISHEK PAarनुशासन 351STERSTORTOISEASE क्षिं ही माहेन्द्र मंडले साध्यमोंकार द्वितटो दरे, लिरवेद्रोचनया भूज़ भूमिस्थं स्वेष्ट रोधनं ॥१७३।। माहेन्द्र मंडल के अंदर साध्य के नाम को दो ॐ के अंदर गोरोचन से भोजपत्र लिखकर उसे भूमि में गाड़ने से अपने इष्ट को रोके। क्ष मठ स ह पल्लव वर्णान मलवरयूंकार संयुतान् विलिरखेत अष्ट दलेषु क्रमशो नाम ग्लौंकर्णिका मध्ये ॥१७४ ।। मंत्रभ्यामा वेष्टयं वाह्यं भूमंडलेन सं वेष्टयं, कंकम हरितालायै विलिवेदात्मप्सित स्तंभ ॥१७५॥ ॐ नमो भैरवी अग्नि स्तंभनि पंच दिव्यो तारिणी श्रेटास्करी ज्वल- ज्वल प्रज्वल- प्रज्वल सर्व कामार्थ साधिनी स्वाहा। ॐ अनल पिंगलोर्ट ॐ केशिनि दिव्याधि पतये स्वाहा ॥ आवेष्टन मंत्री ಇಂಡಡಡಡ (336ಥವಾಡದ
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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