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________________ S5I05PISRTERTS875 विधानुशासन ASDISTRISTRISTRASICS कल्किततैदर तैलने समंगोपोदका जटेभवे, तां हस्त संलिप्ते सर्वदिव्य जयावहे ॥१६७॥ उपोद (पोई) की जड़ के कल्क को बराबर दर() तेल को हाथों पर पोत लेने से सब दिव्य वस्तु जीती जाती हैं। ॐ सोम सुधा पुरतो दत्वा मृत वाहिनी पदं स्वाहा, गृह दाहस्टोपशमः सौवीरै एरंड पत्रे स्यात् ॥१६८॥ ॐ सोम (वीं) सुधा (दवीं) के आगे अमृतवाहिनी पद देकर स्वाहा सहित मंत्र को सौवीर (बेर) और एरंड के पत्र पर लिखने से जलता हुआ घर ठण्डा हो जाता है। कुमारी कृष्णा धत्तूर मूल पत्रं निशां तथा, समभाग हतै दिव्य स्तंभ स्यादुपदेशतः ॥१६९॥ कुमारी (गंयार पाटा) काले धतूरे की जड़ और पत्तों तथा निशा (हल्दी) को बराबर लेने से दिव्य स्तंभन होता है ऐसा उपदेश है। केनापिकते स्तंभ तद्विच्छेदनं करोत्वमुना, मंत्रेण मंत्र वादी हस्वाक्षीमांत बीज युजा ॥ १७०॥ यदि किसी दूसरे ने स्तंभन कर दिया हो तो मंत्री इस मंत्र से उसका छेदन करे । हस्व क्षीमांत बीज() ब्रह्म ग्लौंकारं पुटं टांत वृतमष्ट वन संरुद्धं, वामं यजागृ गतं तदंतरे रांत बीजं च ॥ १७१।। उबीं पुरमथवाह्ये दिक्षु क्रौं ह्रीं विदिक्षु संविलिरवेत्, रजनी हरितालाटो: कुरुते मनुजेप्सित स्तंभं ॥१७२ ।। ॐग्लौं कौं ह्रीं सर्वदुष्ट प्रदुष्टानां कोधादि स्तंभनं कुरूकुरू ठाठः॥ मंत्रः नाम के चारों तरफ ब्रह्म (ॐ) और ग्लौं का संपुट लिखकर उसे टांत (ठकार) से येष्टित (धेर) करके उसे आठ वजों से घेर, वजों के आगे भाग पर (वाम) 3 और अंतराल में रांत (ल) बीज लिखें। उसकी दिशाओं में क्रौं और विदिशाओं में ह्रीं लिखकर बाहर उर्वी (पृथ्वी) पुर (मंडल) बनावे । इसको हल्दी रजनी और हरताल आदि से लिखने से यह मनुष्य का इच्छित स्तंभन करता है। CADRISTOISIRIDIDISTRI5T015 ८९१ PDSRPISSISTD505
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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