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नामालिख्य प्रतीतं कपर पुट गतं टांत वेष्टयं चतुर्भिः, बजे विद्धं कुतं कुलिशं विबरंग वाम बीजं तदग्रे
1 विधानुशासन 2596959955
॥ १६५ ॥
वज्रेश्चान्योन्य विद्धं ह्य परिलिख वहि जिष्णुनात्रिः परीतं, सज्योतिश्चंद्र बिन्दु हरि कमल जयो स्तंभ बिंदुर्लकारे नाम को प्रतीत (प्रकाशित) कपर (ख) की पुट में लिखकर टांत (टकार) से वेष्टित करें। इसको चारों तरफ से बजाकार रेखाओं से बींधकर वज्र (कुलिश) के विवर (छेद) के आगे वाम बीज (ॐ) उसके आगे परस्पर बिंधे हुए वज्र लिखे और जिष्णु (ॐ) के वहि (बाहर) ज्योति (ई) को चन्द्रबिन्दु (अनुस्वार) सहित तीन बार मंडल परीत (घिरी हुई) बनाये जो हरिकमल जयो (खां) बीज स्तंभ बीज (ग्लौं ) और बिन्दु लकार सहित हो
तालेन शिला संपुट लिखितं परिवेष्टां पीत सूत्रेण, दिव्य गति सैन्य जिव्हा क्रोधं स्तंभयति कृत पूजां
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॥ १६६ ॥
इस यंत्र को हरताल से दो शिलाओं के संपुट में लिखकर दोनों यंत्रों का मुख मिलाकर पीले धागे से लपेटे और पूजा करने से दिव्य गति सेना जिव्हा और क्रोध का स्तंभन करता है।
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॥ १६४ ॥
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