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SARASSISEDIS55 विधानुशासन PARISO150150501
ॐ नमो भगवते वारावे मर्दय मर्दय प्रमर्दय प्रमर्दय स्तंभा-स्तंभट हिरि-हिरि संहर-संहर ठाठः॥
साधितो लक्ष जाप्पेन मंत्रोट मातरिश्चनः,
अपां सं स्तंभनः सर्वे: मंत्रिमुरख्यैः प्रकीयते ||१५४ ।। यह यायुमंत्र एक लाख जप से सिद्ध होकर मारिश्वन (वायु) का स्तंभन करता है ऐसा मुख्य मंत्रियों ने कहा है।
मंत्रि तुलादि सं स्तंभ विधातुं यादि वांछति, भासस्यसुचिरं भूरि विदधीत निरोधनं
॥१५५॥ यदि कोई मंत्री तुला आदि का स्तंभन करना चाहता है तो उसे अपना वास सुचिर (बहुत लम्ब्ये समय) तक रोकना चाहिये।
जल मंडल मध्यगतो नित्याष्टकवेष्टितच नित्योयः,
आरव्या तन्मय गता तुला स्थितं दुष्टमग्निलंघो। ||१५६ ॥ जो जल मंडल केमध्य में नित्य (प) आट अक्षरों से वेष्टित (घिरा हुआ) हो उसके बीच में नाम वाला पुरुष तुला और दुष्ट अग्नि को लांघ जाता है।
अष्टदलावृतस्य कुलिश स्यांतः स्थितं ट्रैवेष्टितं नाम,
शुद्धस्यापि विद्यते गुरूत्वमभ्यासंग तुला स्थस्या ॥१५७ ॥ आठ दलों से घिरे हुए कुलिश (वज) के अंदर स्थित हैं से येष्टित नाम याले गुरुत्य (भारी) पुरुष भी तुला में बैठकर उसका स्तंभन करता है।
पिष्टेना कोल मूलेन विलिप्त स्व करो नरः, घटादि दिव्या मादध्या जुवजन विस्मितं
॥१५८॥ अंकोल की जड़ को पीसकर अपने हाथों पर लेप करने वाला पुरूष दिव्य घट आदि को रस्सी के समान अपने हाथों पर पुरुषों को आश्चर्य में डालता हुआ उठा लेता है।
गुलिकासस न तेन कृता शकृता वत्सस्य जात मात्रस्य,
जाध्या सर्व द्रवाटा द्विष दिव्टोकाले कालकूटमपि ॥१५९॥ तुरन्त के पैदा हुए गाय के बच्चे की शकृत (विष्टा) और नत (तगर) से बनाई हुई गोली को जग्ध्या (खानेसे) पुरुष कालकूट विष को भी खा सकता है। SSTRETRESIDISTRISTRI5T05[८८७PSTRISISTRICISTRIDDESI