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सुचिरं चर्विता दंतैः पावकाद भया भयं. नरस्टा रसनां रक्षेदास्याभ्यंतर संस्थिता
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लज्जरिकाभेक पलं कर लिप्तं स्तंभनं करोत्यग्रेः, कप्पर दिव्य स्तभयेदि सूंठी भक्षयेद्धीमान्
॥ १५१ ॥
लञ्जारिका (लजवंती) भेकपलं (मेंढक की चर्बी) को हाथों पर पोतने से अनि का स्तंभन होता है और यदि पुरुष सूंठ खाए तो दिव्य कर्पूर (हथियार) का स्तंभन होता है ।
॥ १५२ ॥
यदि पुरुष कपूर और सोंठ को खाता हुआ दांतों से बहुत देर तक चबाकर आग को मुँह में ले तो मुँह में रखी हुई उस औषधि के प्रभाव से उसका मुँह नहीं जले।
भक्षितः पिप्पली कामो मरिचेन समायुतः, अलं विधातुं स्तंभनादित्या क्षत दिव्ययोः
॥ १५३ ॥
पीपल काम (मेनफल ) काली मिरच को समान भाग खाने से सूर्य की किरणों की दिव्य तेजी का बिना हानि पहुँचाये स्तंभन करने में अलम (समर्थ) है । esPPSSPPSPS८६ PSPSP59SP59595
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