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पिष्टेन दर तैलेन लिप्त हस्तौंबुजन्मना, यं स्पृशेत्पावकं सःस्याहिमशीकरशीतलः
॥ १४८ ॥
जो अंबुजन्म (कमल) को दर और तेल में पीसकर आग को छूता है तो आग का स्पर्श चंद्रमा समान शीतल लगता है।
लवणाहि दल सरसां करतल मनलो ज्वलं नदग्धुमलं, लक्ष्मी कुमारिकांभः सिक्तान्केशान् यथा दीपं
॥ १४९ ॥
लक्ष्मी (तुलसी) और कुमारिका (धृत कुमारी गंवार पाठा) के जल तथा लवण और अहि (वजी वक्ष) के पतों के रस से हाथों को पोतने से अग्रि नहीं जला सकती है जैसे दीपक से बालों को सेकते हैं।
दरतैलेन क्वथदपि सपिं सेतैलं स्पृशेन्निरारेकः, सिद्धेनाभ्यक्त कर: स्वर मूत्रैः सकदली कुसुमैः
॥ १५० ॥
केले के फूल गधे का मूत्र और दर और तेल को हाथो पर छूकर मलने से गरम तेल और घृत को छू सकता है।
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