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जटया काक जंघायाः पुष्ये स्वीकृतया तर्नु,
कत्या लिप्तां सदोषोपि वन्हि दिव्यं जो यूपं । ||१४५॥ काक जंघा की जड़ को पुष्य नक्षत्र में लेकर उससे शरीर का लेप करके दोषयुक्त पुरुष भी दिव्य अग्नि को निश्चय से जीत लेता है।
दर तैलांबुजन्मेंदु पाटली मूल लेपनं कृत्वा, धि तलयोस्ताभ्यां संचरेदसिंचये
॥१४६॥ दर () तेल अंबुजन्य (कमल) इन्दु (कपूर) पाटली मूल (पांडुरफली) की जड़ का पावो के नीचे अर्थात् तलयों पर लेप करके उनसे अग्नि के समूह पर चले।
क्षेत केकक्षताद्भूते तचूर्ण विमिश्रिते वन्हि हिम, सम स्पर्शः स्यात्स्व स्यांतगगते सति
॥१४७॥ श्वेत केकक्षत (सफेद मोर के पंख्य) के चूर्ण को भूत (बहेड़ा) में मिलाकर लेप करने से अंदर गई हुई अग्नि का स्पर्श बर्फ के समान शीतल हो जाता है।
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