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________________ C505MSVS25PSI Pengunena Y5YSY5YSY/SES ॐ नमो भगवते वरुणाय वरुणाय स्तंभय स्तंभय ठः ठः ॥ एष लक्ष जपात्सिद्धः पाश पाणयधि देवताः, मंत्र दीपार्चिषं रूंधे सप्त वार जपादिभिः 11280 11 यह पाश पाणि देवता का मंत्र है एक लाख जप से सिद्ध होता है। इसका सात बार जप करने से दीपक की (अचिराषु) लौ का स्तंभन होता है। दिक्षु ग्लौं मलवरयूं संयुतं कूटं विदिक्षु, नव कोष्टेषु लिखितं सुरभि द्रव्यैः तत्पीतं स्तंभनं वन्हेः ॥ १४१ ॥ दिशाओं में ग्लौं और विदिशा में कूट सहित मलवरयूं को (दम्यू) को नौ कोठों में सुगंधित द्रव्यों से लिखकर पीने से अग्रि का स्तंभन होता है । नाम खांत पिंडं वसुदल सहितं भोज मध्ये विलिख्य, तत् पिंडानेषु योज्यं वहिरपि वलयं दिव्य मंत्रेण कुर्य्यात् ॥ १४२ ॥ ॥ १४३ ॥ टांतं भूमंडलातं विपुल तर शिला संपुर्ट कुंकुमाद्येद्धार्य, श्री वीरनाथ क्रम युग पुरतो वन्हि दिव्यो प शांतयै ॐ शंभेई अमुकस्य जलं जलणं चिंतये मेतेणा पंचणमो आरो आरो मारि चौर राउल घोरू वसग्गं विणासे स्वाहा ॥ दिव्य मंत्र : संस्कृत टीका - नाम देवदत्त नामा ग्लौं देवदत्त नामोपरि ग्लौंकारं खांत पिंड़ं खकार स्यांत गकारः स चासौ पिंडः खांत पिंड़ गल्वर्यू मिति पिंड: वसुदल सहितं भोजपत्र विलिक्यं अष्टदलान्वितं पद्म पत्रे विशेषण लिखित्वा तत्पिंड़ं तत् कर्णिकाग्रां लिखेत् वयूँ मिति विंडं तेषु अष्टदल पत्रेषु योज्यं योजनीयं वहिरपि तदष्ट दल कमल वहिः प्रदेशेपि वलयं केन दिव्य मंत्रेण विशिष्ट मंत्रेण कुर्यात् दांत ठकारं कथं भूतं भूमंडलांतं पृथ्वी मंडलांतं स्थितं दिव्य मंत्र वलय वहिः प्रदेशे ठकारेण वेष्टय तद्वाहि: पृथ्वी मंडलं लेखनीय मित्यभि प्रायः- व विपुलतर शिला संपुटं विस्तीर्ण तर पाषाण पट्ट संपुटे कैः कुंकुमाद्यैः कास्मीरादि पीतद्रव्यैः धार्य धारणीयं क्व श्री वीरनाथ क्रम युगपुरतः श्री वीर वर्द्धमान स्वामी चरणं युगलाग्रतः किमर्थं वन्हि देव्योपशांतयैः अनल दिव्योप शांत्यर्थं ॥ ॐ भई अमुक अमुकस्य जलं जलणं चिंतय मत्तेण पंच णमो आरो अरि मारि चोर राउल घोरुवसग्गं विणासेई स्वाहा || अनि स्तंभन यंत्र 050/50/51 50505 ‹‹‹ VGV50525252525
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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