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एते ध्यात्वा स्तथा तस्य जिव्हा स्तंभं वितन्वते, जकारो क्षणोर्यथा ध्यातो विदद्यते दृष्टि बंधनं
॥१३६॥ शास्त्रार्य करने में प्रतिवादी के मुख में त्रीं क्रों तथा जलता हुआ रेफ (रकार) अथवा श्रां का ध्यान करे। इसका ध्यान करने से उसकी नजर बंध जाती है तथा आंखों में ज का ध्यान करने सेउसकी नजर बंध हो जाती है।
लिरवेन्नाम जिलंकार मध्ये पृथ्वी पुरान्वितं, शिलायां तद वष्ट व्यं स्टाद्वचो बुद्धि रोधनं
॥१३७॥ पृथ्वी मंडल के बीज में जि और लं के अन्दर नाम को लिखकर दो शिलाओं मे रखने से बाणी और बुद्धि का स्तंभन होता है।
तथ मध्ये गतं साध्यं तोय मंडल मध्यगंलेरां, सुगंधिभिद्रव्यै भूर्जेवाक सिद्धि दायकं
॥१३८॥ त और य के बीज में साध्य के नाम को लिखकर उसके चारों तरफ जल मंडल बनाकर सुगन्धित द्रज्यों से भोजपत्र पर लिखे तो बाणी सिद्ध होगी।
लभते विजयं वादे पुन्नागस्य जटां मुखे,
शिफां शिरिव शिरवाया वा पुष्य रूक्षे स्वीकका दद्यत ॥१३९ ।। पुष्य नक्षत्र में लाकर रखी हुई पुन्नाग (कमल) की जड़ या मयूर शिखा की जड़ को (कृक) मुख में धारण करने से शास्त्रार्य में विजय मिलती है। SADRASIRISTRIDIOSRIDIOSIL८० HDDISTTERISPISCESCIES