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देवदत्त नाम को ग्लौं में लिखकर यांत पिंड (गम्ल्यू) उसके बाहर कर्णिका में लिखकर बाहर आठ दल का कमल बनाए ।उस कमल के आठों पत्तों में भी ग्म्ल्यूं पिंडाक्षर लिखे। इसके बाहर उपरोक्त दिव्य मंत्र का बलय दे । इसको टांत (ठकार) और पृथ्वी मंडल बनाए इसको बड़ी भारी शिला की संपुट में रखकर दिव्य अग्नि की शांति के लिए श्री वीर भगवान के सामने रखे।
दिव्येषु जल तुला फणिरयगेषु प व ह क्ष पिंड मा विलिरव्येत्, पूर्वोक्ताष्ट दलेष्वपि पूर्व वदन्यत् पुनः सा ॥१४४ ।।
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दंबरम
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दिव्येषु चतुर्दिव्येषु कथं भूतेषु जल तुला फणि खगेषु जल दिव्य तुला दिव्य घट सर्प दिव्य पक्षि दिव्य एतेषु चर्तुष व प ह क्ष पिंडं जल दिव्ये क्ल्व मिति पिंड तुला दिव्ये पल्व मिति पिंडं फणि दिव्ये हम्यूँ मिति पिंडं खग दिव्ये मल्वयूँ मिति पिंडं आविलिखेत् समंताद्विलि खेत् केषु पूर्वोक्ताष्ट दलेषु प्राग्विलिखिताष्ट दलेषुकथित चतुर्दिव्येषु व प ह क्ष पिंडान क्रमेण लेखनीयं अपि शब्दान मध्येपि च पूर्व वदत्यं पुनः सर्वं अन्यत्युनः यंत्रोद्धार प्रग्विलिखितं यथा तथैव सर्वं ।। पूर्लोक्त आठ दलों के मध्य में जल दिव्य में बल्यूं तूला दिव्य में पल्यू फणि दिव्य में हम्ल्यूं और खम दिव्य में ल्यूँ बीज को लिखे और शेष को उसी प्रकार रहने दे अर्थात इस अग्नि स्तंभन यंत्र के समान चार यंत्र और बनाए किन्तु उसकी कर्णिका के मध्य में लिखित बीज को बदल दे और बाकी सब वैसा ही रहने दे कि जिसकी कर्णिका में टयूँ बीजाक्षर हो वह जल दिव्य का स्तंभन करता है और पल्ल्यू बीज से तुला दिव्य का स्तंभन होगा और जिसकी कर्णिका में दम्ल्वयूँ बीजाक्षर हो वह दिव्य पक्षी का स्तंभन करता है। STORISTCASTOTSTOIDESICS ८८२ P15PISTRISTRISTRISTRISTOIEN