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________________ 952525P5P3P5) kugeuza ¥52525252525 स्वा ॐ लीं 3. 感 स्वा 35 土 क्षिं 发 क्षि L लीं लांगाल्यां लिप्त सुर्वांगो हस्त तारा गृहीतया, मलं जेतु मलं मल्लः शतमे कोपि निर्भयः ॥ ११६ ॥ हस्त नक्षत्र में ली हुई लांगली (कलिहारी) का लेप करके कुश्ती लड़ने वाला पहलवान एक सौ पहलवानों से भी निर्भय रहता है अर्थात् उनको जीत लेता है । मूलं श्वेत अपामार्गस्य कुबेर दिशि संस्थित, उत्तरा त्रितये ग्राह्यं शीर्षस्थं द्यूत वाद जित् 12 ॥ ११७ ॥ उत्तरा आषाढ़ा उत्तरा भाद्रपद और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्रों में सफेद चिड़चिटे (अपामार्ग) की जड़ को जो उत्तर दिशा में उगी हुई हो, उसको विधिपूर्वक उखाड़कर सिर पर रखने से पुरुष जुए और शास्त्रार्थ में जीतता है। आट रुषक संभूतौ वंदाक: पाणि संस्थिते:, अलं जनयितुं द्यूते प्रतिपक्ष पराजयं とらたちにちわ PSPSPSP595 ॥ ११८ ॥ 50/50/505.
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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