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________________ DSPIRI5DISEDISTR15 विद्यानुशासन VIDEO5501525IRIN ॐनमो भगवती पिशाची देवी पिशाच वाहिनी केरिकि हुंडकेशिशीग्रंकोलुकोलु मुज मुज घग घग दुष्ट भैरवी ह्रीं स्वाहा ।। पिशाच देवीमरूणां पिशाच सराहनां साध्य मंत्रतस्त्वं, सन्मातु लुंगाऽभयदान हस्ता कुठार पाशात्त करां सुभत्तया ॥ १०९॥ द्विषट सहस्तैः करवीर पुष्प दंशांस होमेन च सिद्धि मेति, सानालिकेरानऽभिमंत्र्य मुत्तया नभों गणास्था रिपुकं भिन्नति ।।११०॥ हे पिशाच देवी ! तुम मरुत (वायु) देवताओं के याहन याली हो । तुम अपनी चारों भुजाओं में मातुलुंग (बिजोरा) के फल अभयदान, कुल्हाड़ी, नागपाश को धारण करती हो। आप इस मंत्र को सिद्ध कर दें। यह भक्ति से कहे। यह प्रार्थना मंत्र को जपने से पहले करें। यह मंत्र कनेर के फूलों से बारह हजार जपे तब तदशांश होम करने से सिद्ध होता है इस मंत्र से नारियल को अभिमंत्रित करके आकाश में फेंकने से यह शत्रु को भगा देता है। तिस्तो भुवः समालिव्य मध्ये यूं यूं तथैव च, चतुर्दले लिरवत्पदम चंडे च ले नियोजयेत् ॥१११॥ पत्रेषु च लिरवेन्मंत्री चर्तुमंत्रं बहि स्थितं, नामांतरितं सपिंडं रक्षण मंत्र तत्वतः ॥११२॥ तीन पृथ्वी मंडल बनाकर उनमें यूं यूं लिखे। उसके अन्दर चार दल का कमल बनाकर उसमें चंडे चूले लगाए। उन पत्तो में आगे लिख्खे चार मंत्रो को लिखकर उसके अन्दर नाम सहित सपिंड (स्मल्यू) पिंडाक्षर लिखे। यह मंत्र रक्षा करता है। ॐधरणेद्र आज्ञापयति स्याहा॥ ॐ सर्व सत्व वंशकराय स्वाहा ॥ ॐपद्मावती परमार्थ साधिनि स्वाहा।। ॐ पार्थ तीर्थकराय स्वाहा ।। वाम वृत्ति समालेरख्य क्षुरिकाषुहं सं स्थितो, युद्धार्णव गतो योद्धा विजयं लभते सदा ॥११३॥ इस यंत्र को वाम वृत्ति (बाई तरफ) की विधि से लिखकर छुरी त्रिशूल के ऊपर रखकर युद्ध रूपी समुद्र में गया हुआ योद्धा सदा विजय को ही प्राप्त होता है। SADIOISODOSPIDE5125[८७३PIETRIEPISORTOISISEXSI
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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