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* विद्यानुशासन 259595959595
निमित्तं निश्चितं इहेत्यादि अस्मिन्कल्पे प्रतिपादितं कः मुनिवरैः मुनि वृषभै : कथं भूतैः भव्याब्ज धर्माशुभिः भव्याः एताब्जानि तेषां धर्माशुरादित्य स्तद्वत्यै मुनिभि भर्खाकु धम्र्म्मा शुभिः ॥
प्रायः (बालक युवा वृद्ध) उर्वीश (चक्रवर्ती भरत, सगर, मधवा, सनत कुमार, शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरहनाथ, सुभौम, सुपद्म, रूचि, जयसेण, हरिषेण, ब्रह्मेश) महानदियाँ (गंगा, सिन्धु, रोहित, रोहितास्या, हरित, हरिकांता, सीता सीतोदा, नारी, नरकांता, सुवर्णकूला, रशकूला, रक्ता, रक्तोदा) नवग्रह (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु) नग (पर्वतादि, हिमवत, महाहिमवत, निषद्य, नील, रूक्मि, शिखरिन) व्याधि (बीमारियों में से नाम) प्रसून (फूलों में से नाम) में से एक नाम के अक्षरों को गिनकर उनको जोड़कर उस जोड़ी हुई गिनती में बीस को जोड़ कर उसको तिगुना करके और गुणनफल में पन्द्रह (तिथि) का भाग दे, यदि शेष में सम अक्षर हो तो विरुद्ध फल विषम अंक हो तो शुभ फल कहना चाहिए। यह प्रयोग भव्य रूपी कमलों को सूर्य के समान खिलाने वाले श्रेष्ठ मुनिराजों ने कहा है ।
ॐ नमो भगवते ज्वाला मालिनी गृद्ध गणां परिवृते ठः ठः ॥ लक्ष प्रजाप्प सिद्धिं युद्धाय गतो जपन्न मुं मंत्र, संग्रामं विजय लक्ष्म्याः स्वयं वृतो वल्लभो भवति
॥ १०६ ॥
इस मंत्र को एक लाख जप से सिद्ध करके युद्ध के लिए उस मंत्र को जपता हुआ यात्रा करनेवाला स्वयं ही विजय लक्ष्मी का स्वामी होता है ।
दुर्गा मंत्र: प्रणवोचि दुग्र्गा रक्षिणी ठठेति अद्यम, अष्ट लक्ष जाप्पात् सांगः सं सिद्धमुपयाति
॥ १०७ ॥
ॐ दुर्गे नमः १ दुर्गे ठः ठः २ दुर्गायै वषट ३ भूताक्षिणी हुं ४ दुर्गा रक्षिणी ठः ठः ५ अंगानि ॥
युद्ध व्यवहारादिष्वेत जप्ता जय श्रीयं लभते, नित्यमनेन जयार्थी खडगं क्षुरकां च पूजयतु प्रणय (3) अर्चि दुर्ग रक्षण ठः ठः
॥ १०८ ॥
यह मंत्र अंग सहित आठ लाख जप से सिद्ध होता है। युद्ध मुकदमें आदि में इन अंगों सहित मंत्र को जपकर पुरुष कल्याण को प्राप्त करता है। विजय की इच्छा रखनेवाले पुरुष को इस मंत्र से खड़ग और छूरी का पूजन करना चाहिए
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