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________________ CISIOISTOISISTERSIO5 विधानुशासन 0525IDISTRICICISION इनमेदो रजो युक्तं भांतं कोणे लिरवेद्दिशि, पिंडस्ट पिंडमाग्नेयं तदयंत्रं स्यात् पयोनिधेः ॥४३॥ मेद (व) पिंड (म्ल्यू) की दिशाओं में आग्नेय पिंड (रम्ल्यू) और कोणों में अर्थात् विदिशाओं में भान्त (म्म्ल्व!) पिंड लिखे यह वरूण ! योनिधि) का मंत्र है! वायु वामज रैर्युक्तं कोणे पिंडस्य सं लिरवेत. दांत भ पिडं कष्टासु यंत्रं मारूत मी रीतं ॥४४॥ मत्वयूँ वायु पिंड के कोनों में वाम (ॐ) सहित (दांत) न लिखे और दिशाओं में भ पिंड (मल्ट्र) लिखें यह मारूत (वायु) का यंत्र कहा गया है। आशा सुनिज बीजस्य ध्वांतं पिंडं समर्पयेत्, विदिक्षु सकली कूटामिदं यंत्रं धनेशिनः ॥४५॥ कुबेर के पिंड (म्म्ल्व) की दिशा में ध्यांत पिंड (ल्यू) लिखे तथा विदिशाओं में पूर्ण कूट (क्षा) को रखे यह धनेश का (कूबेर) का यंत्र है।। रोयांत ईलि जिदयुक्तो विदिक्ष्या शा सुलिरव्यता, श पिंडो निज पिंडस्य तदयंत्रं शांभव भवेत् ॥४६।। रो रो इलि (मंगल) के स्वामी म्ल के दिशाओं में श पिंड (श्म् ) लिखकर विदिशाओं में अपना ही पिंड लिने यह ईशान का यंत्र है। इंद्रादि मंडलैः स्व स्वायुध युक्तटौः क्रमेण वेष्ट्रयानि, आकाश मंडलेन च ततो वहि स्तानि यंत्राणि ॥७॥ इंद्रादि आठ लोकपालों के मंडल अपने अपने शस्त्र आदि से सहित है तथा इन यंत्रों के बाहर आकाश मंडल से वेष्टित है। वैश्रवणस्यतु यंन्यसनीय व्योम मंडल स्थाने, वैवस्वतस्य मंडल मंडलमलि भीषणांड संयुक्तं ॥४८॥ कुबेर के यंत्र में आकाश मंडल के स्थान में भमरों के भयंकर अंडों सहित यमका मंडल बनाना चाहिये। इति अष्ट दिक्पाल यंत्राणि मंडलानि सर्वलक्षण संयुक्तं गज मुत्तममेवच, चेतं सं बुद्ध योग्यं समुत्तगं मध्यम वयासि स्थितं CASIRISTRISTOTSIDASIRAIPS८५९PISTRISTOTRIOTECTERISPTET ॥४९॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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