SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 864
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 9595959APPS विधानुशासन 959595959695 ॐ ठल्चर्यू ठः ठः ठः ठः अवतरत अवतरत तिष्ठ तिष्ठ सन्निहितो भव भव निज पूजां गृह्ण गृह हुं हुं रवीं स्वाहा ॥ प्रतिष्ठापन मंत्र: दिग्पालैः सहितास्य स्वयंत्र मंत्रैः पताकिका, ध्वज स्याष्ट सु वनीया दिक्षु घंटा समायुता ॥ ३७ ॥ ॐ ठ्ल्यू इंद्र देवते बलिं गृह गृह ॐ ह्रीं श्रीं लीं ह्रीं स्वाहा ॥ अष्ट दिक्पाल मंत्र: फिर अपने अपने यंत्र और मंत्रो सहित पताका और ध्वजों को घंटो सहित आठो दिशाओं में बांध देये । कलरव हवयमभ वर्णान क्रमेण जानंति लोकपालानां, इंद्रादिनांमपिंडानमलवरयूंकार संयुक्तान् ॥ ३८ ॥ उन इंद्रादि आठ लोकपालों के मलवर्यूकार सहित क ल ख ह व य म और भ वर्ण हैं। क पिंडस्य महादिक्षु पार्थिवं बीजमालिखेत्, स्वकार पिंड कोणेषु तदयंत्रं स्यात् छत्र क्रतोः || 33 || कल्चर्य बीज की चारों दिशाओं में पृथ्वी बीज लं लिखे और इसके कोणों में खकार पिंड को लिखे महादिक्षु लिवेदयातं विदिक्षु कपराक्षरं, द्वितय कस्य पिंडस्य वह्नि यंत्र मिदं मतं 1180 1! दूसरे पिंड की महादिशाओं में यांत (रं) और विदिशाओं में के आगे के अक्षर अर्थात् ख अक्षर को लिखे यह अग्नि (यान्हे) यंत्र है व पिंडस्य लिखेत् दिक्षु पार्थिवं कांत पिंडं, विदिक्षुयमकार बिंदु संयुक्तं तदयंत्रं मातृकं मृतं ॥ ४१ ॥ ख पिंड ( म्ल्व) को दिशाओं में लिखकर पृथ्वीमंडल बनावे और कांत पिंड (कल्चर्यू) की विदिशाओं में मकार को बिंदु (अनुस्वार) सहित लिखे इस यंत्र को मातृका यंत्र जाने । असिकादि समायुक्तं यमांत पिंडस्य कोणगं. मपिंडाधि स्थितो यंत्रं निऋतेरिदमीरितं ॥ ४२ ॥ यमांतं (यम दिशा दक्षिण दिशा के अन्त में) नैऋते दिशा में असिआउसा सहित मपिंड (म्म्ल्यू) स्थित हो ऐसे यंत्र को नैऋति दिशा का यंत्र (ईरित) कहा गया है। 95959595595954 PSP/59/ 9506951
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy