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________________ 252525252525 dengauero 952525252525 वह भैरव लाल नेत्र वाले हाथ में मुदगर वाले होंठ इसते हुए और कच (बाल) ऊपर को उठे हुए वक्र (डोटी) दष्टौ (डाढ़वाले) और द्वेष करने वाले शत्रु की सेना को भगाने में उद्धत हो । तस्या अद्यस्ताद्वेतालं मातृशा समंततः, विलिखेत्समुदिताः स्व स्व वर्णायुध वाहनैः ॥ ३० ॥ उनके नीचे वेताल और चारों तरफ आठ मातृकाओं को अपने अपने वर्ण और आयुध (अस्त्र) और वाहन सहित लिखे । ब्राह्मयांतरालेषु विलिखेच्च जयादिकाः, अष्ट दंड करा देवार्याणा झन समन्विताः 11 32 11 ब्राह्मणी आदि के अंतराल में जया आदि आठ दंडकारी देवियों को बाण और अशन (धनुष) सहित लिखे । सितो रक्तोय. हरित: कृष्ण श्रेतोऽसित स्तथा, सर्व पीतश्च वर्णाः स्युर्ज्जयादीनां क्रमादमी ॥ ३२ ॥ जया आदि आठों देवियों के रंग क्रमशः सफेद लाल हरा काला सफेद काला और सब पीले होतें हैं । चक्राणि भिंडि पालांश्च वहिर्दिक्षु तथा धनु, चतुस्तदं तरालेषु कुंतमा रोपितं शुभं ॥ ३३ ॥ उनके बाहर की दिशाओं में क्रम से चक्र भिंडपाल धनुष हो तथा उनके अंतराल में कुन्त (भाला) धारण किये हुवे हो । अपराजित मंत्रेण तत्सर्वं वेष्टयेतत्कमात्, मंडलानि लिखे द्वाये क्षोणयं भोधिनभ स्तथा ॥ ३४ ॥ उन सबको क्रम से अपराजित मंत्र से वेष्टित करके उनके बाहर पृथ्वी जल तथा वायुमंडल बनावे एतोषामंतरालेषु मंडलानां ततो लिखेत्, जयादीनां चतसृणां मंत्रान मंत्र विधानवित् ॥ ३५ ॥ उन मंडलो के अंतराल में मंत्रों के विधान को जानने वाले चारों जया आदि के मंत्रों को लिखे । ततः शुभ मुहूर्त्तेतं सर्वतोभद्र मंडले, प्रतिष्ठापन मंत्रेण प्रतिष्ठांप्प समर्चयेत् ॥ ३६ ॥ फिर अच्छे मुहूर्त में उसका प्रतिष्ठापन मंत्र से सर्वतोभद्र मंडल में प्रतिष्ठा करके पूजा करे । PPSPSPSPSP5954 PSPSP59‍6959
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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