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________________ COPEDISEASIRIDIO विधाबुशासन XSRIDIOINDISTORIES ॐ ह्रीं भैरव रूपिणी चंडशूलिनी प्रतिपक्ष सैन्यं चूर्णय चूर्णय घूर्णय घूर्णटा भेदय भेदय ग्रस ग्रस रव व स्वादय स्वादय मारय मारय हुं फट ॥ यह मंत्र आठों दिशाओं के आठों कमलों में लिखे। इस यंत्र को श्मशान में लाये हुए मृतक के मुख पर के वस्त्र पर या कृष्ण अष्टमी या कृष्ण चर्तुदशी को युद्ध में संग्राम में मरे हुए कपड़े पर हडताल आदि पीले द्रव्यों से कौरंटक की कलम से लिखे। फिर इस यंत्र को पदमावती देवी के सामने रककर पीले सुगंधित पुष्पों से पूजा करके एक अत्यंत उच्च स्तंभ से बांध देये। इस यंत्र से बंधे हुए स्तंभ को देखकर अत्यन्त दूर से देखकर भय से व्याकुल होकर विशेषता से व्यनाये युद्ध के सेना के व्यूह से शेष बचे हुए शत्रु भाग जाते हैं। अबानि पट जारो संसा: मालिकमः, अनुसत्य तमेवैकं पटं मंत्री प्रकल्पयेत् ॥२५॥ पहले जसि अबादि (अयाध बिना बाधा किया हुआ) पट यंत्र नाम के यंत्र का वर्णन किया गया है उसी अनुसार मंत्री एक कपडा बनवावे । व्यास स्तत्र त्रयो हस्ता स्ततो मध्यस्टा वाससः, सुवर्ण वाहनंभा स्वत्सुवर्ण सदृशाति ॥२६॥ उस वस्त्र का व्यास तीन हाथ हो उस कपड़े के बीच में सोने के याहनवाली चमकते हुए सोने के समान कांतिवाली हो। पाशं चक्रं च वजं च स्वडगं च क्रमतो दधत, त्रिशूल शक्ति परशुच्छुरिकाश्चाष्टभिर्भुजैः ॥२७॥ अपनी आठों भुजाओं में नागपास चक्र वज खडग त्रिशूल शक्ति परशु छुरी को धारण करने वाली हो। लिरवेद्विजय देव्याः स्सद्रूपमाभरणोज्वलं, अलिखतामुभयतो भीषणौभैरवावुभौ ॥२८॥ विजयदेवी को सुंदर रूप याली आभरणों से युक्त उज्जवल अंगवाली लिखे उसके दोनों तरफ दो भयंकर भैरय लिखे। रक्ताक्षौ मुदगर करौ दष्टोष्टाग बूर्द्ध मूर्द्ध चौ, वक दंष्टौ द्विषत्सेना भंगदान समुंद्यतो ।।२९।। SADRISTRI51050512151055 ८५६P/5RISTORISTRI505OSS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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